उच्च न्यायालय के एक नए आदेश के तहत बिना कोई दक्षता परीक्षा दिए अरसे से निजी और सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे देशभर के शिक्षकों के लिए अब केन्द्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) को पास करना जरूरी होगा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि कोई भी शिक्षक इस पात्रता परीक्षा को पास किए बगैर अपनी सेवा आगे बरकरार नहीं रख पाएगा।
पीठ के माध्यम से यह भी कहा गया की नर्सरी से आठवीं तक के जितने भी शिक्षकों की नियुक्ति है। शिक्षकों की सेवा बरकार रखने हेतु ऐसे ठीक-ठाक कदम उठाया जाना होगा। पीठ के माध्यम से यह भी कहा गया कि बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के माध्यम से शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 232 को लागू करना यहां पर जनहित में है। इस मामले में जो अगली सुनवाई हो 14 मई 2025 को होगी। हाई कोर्ट के इस आदेश के आधार पर यह भी कहा गया कि हाई कोर्ट के आदेश अनुसार मान्यता प्राप्त संस्थाओं से लेनी होगी डिग्री और डिप्लोमा। कोर्ट ने यह भी कहा है की डिग्री लेने के बाद सीटेट पास करना जरूरी है उसके बाद ही वह अपनी सेवा को विद्यालय में जारी रख पाएंगे। सरकारी और प्राइवेट दोनों विद्यालय के लिए यह नया नियम जारी कर दिया गया है। नई नियुक्तियों में भी इस नियम का पूरी तरह से पालन करना आवश्यक होगा। कोर्ट के माध्यम से कहा गया कि NCTE 4 सप्ताह में देश भर में परीक्षा की योजना पूरी तरह से तैयार करें। सेवा बहाली हेतु बीएड या समकक्ष डिग्री अथवा शिक्षक संबंधित डिप्लोमा लेना अनिवार्य कर दिया गया है। परीक्षा पूर्ण किए बिना शिक्षकों की नौकरी नहीं रह पाएगी।
उच्च न्यायालय के आदेशानुसार, नई नियुक्तियों में भी इस नियम का पालन करना जाना जरूरी होगा। हाईकोर्ट का यह आदेश देशभर में तकरीबन 5 लाख शिक्षकों पर असर डाल सकता है। चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को कहा कि चार सप्ताह के भीतर देशभर में इस परीक्षा के आयोजन को लेकर योजना तैयार करे। इस कार्ययोजना की विस्तृत जानकारी एक हलफनामे के तौर पर बेंच के समक्ष पेश की जाए।
बेंच ने कहा – NCET को सख्त कदम उठाने होंगे
बेंच ने कहा कि नर्सरी से आठवीं कक्षा तक के शिक्षकों की नियुक्ति और पुराने शिक्षकों की सेवा को बरकरार रखने के लिए एनसीटीई को सख्त कदम उठाने ही होंगे। बेंच ने कहा कि बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के मद्देनजर शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 23(2) को लागू करना जनहित में है। इस मामले में अगली सुनवाई 14 मई 2025 को होगी।
मान्यता प्राप्त संस्थानों से डिग्री और डिप्लोमा
उच्च न्यायालय ने इस आदेश में खास तौर पर कहा कि जो शिक्षक दशकों से पढ़ा रहे हैं और उन्होंने एनसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों से बीएड अथवा शिक्षण संबंधी डिग्री व डिप्लोमा नहीं लिया है तो उन्हें दोबारा मान्यता प्राप्त संस्थानों से अपनी बीएड व शिक्षण संबंधी डिप्लोमा करना होगा। इसके लिए उन शिक्षकों को समय दिया जाएगा। यह डिग्री लेने के बाद इन शिक्षकों को सीटीईटी परीक्षा पास करनी होगी। उसके बाद ही वह अपनी सेवा को विद्यालयों में जारी रख सकेंगे।
जनहित याचिका पर दिया गया आदेश दिया
इस मामले में गैर सरकारी संगठन जस्टिस फॉर ऑल की ओर से वकील खगेश बी. झा और वकील शिखा शर्मा बग्गा ने जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना के खंड 4 में संशोधन किया। मगर कक्षा एक से आठवीं तक के लिए शिक्षक की नियुक्त करते समय न्यूनतम योग्यता माफ कर दी जा रही है, यदि उस शिक्षक की नियुक्ति अधिसूचना जारी होने से पहले हुई थी। जनहित याचिका में कहा गया कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का यह निर्णय छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाला है। हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और आदेश दिया कि सभी शिक्षकों को सीटीईटी की परीक्षा से गुजरना होगा। उसके बाद ही वे अपनी नौकरी बचा पाएंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कही ये बातें
🌀 नई नियुक्तियों में भी इस नियम का पालन किया जाना आवश्यक होगा।
🌀 कोर्ट ने कहा, एनसीटीई चार सप्ताह में देशभर में परीक्षा की योजना तैयार करे।
🌀 सेवारत शिक्षकों के लिए बीएड या समकक्ष डिग्री अथवा शिक्षण संबंधी डिप्लोमा लेना अनिवार्य।
🌀 परीक्षा उत्तीर्ण किए बिना शिक्षकों की नौकरी बरकरार नहीं रह सकेगी।
साल 2015 में संशोधन के साथ किया लागू
केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) को लेकर वर्ष 2010 में अधिसूचना जारी कर दी गई थी। इसके बाद वर्ष 2015 में इसमें संशोधन किया गया और इसे लागू किया गया। हालांकि, इसके बावजूद निजी और सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति बगैर पात्रता परीक्षा के जारी रही।