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मासूम दिलों पर आखिर ये कैसा बोझ कि सिर्फ 13-15 साल की छोटी सी उम्र में उठा रहे आत्मघाती कदम

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Korba: विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर आज चिंता की बड़ी बात : मासूम दिलों पर आखिर कैसा बोझ पड़ रहा है कि सिर्फ 13-15 साल की नन्हीं सी उम्र में मासूमों को आत्मघाती कदम उठाने पड़ रहे हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि बच्चों को अपनी पलकों में बिठाएं। उन पर संजीदगी से नजर रखें। कहीं बेवक्त वे आपकी नजरों से ओझल न हो जाएं।


theValleygraph.com


कोरबा। क्या आप यह जानकार यकीन कर सकते हैं कि इसी साल 6 मई को जब स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां चल रही थी, तब सिर्फ तेरह साल की एक बच्ची ने फांसी लगाकर अपनी नन्हीं सी जिंदगी खत्म कर ली। 22 अप्रैल को महज 15 साल की एक बालिका फंदे पर लटक गई और फरवरी की चैबीस तारीख को 17 साल की युवती ने जहर खाकर खुद को मौत के हवाले कर दिया। चैंकाने वाली यह लिस्ट काफी लंबी है, जो सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली कोई भ्रामक खबर नहीं, बल्कि हकीकत बयान करती पुलिस डायरी में दर्ज तथ्य परक आंकड़ों की कड़वी जुबान है। ये आंकड़े माता-पिता, शिक्षक और हमारी व्यवस्था के कानों में चींख-चीखकर फरियाद कर रहे हैं कि कम से कम यह जानने की कोशिश तो करें कि आपके दिल के सुकून आखिर किस बेचैनी में यूं खत्म हो जाने पर मजबूर हो रहे हैं।

वर्ष 2025 में ही जनवरी की पहली तारीख से लेकर पांच सितंबर तक उपलब्ध केवल जिला अस्पताल परिसर स्थित पुलिस चौकी में दर्ज रोजनामचा के आंकड़ों के अनुसार जहर सेवन एवं फांसी के फंदे पर लटककर कुल 40 लोगों ने खुदकुशी कर ली। अगर जिलेभर के पुलिस स्टेशन के संपूर्ण आंकड़े एकत्र कर पूरी लिस्ट बनाई जाए, तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि आठ माह व 5 दिन की अवधि में आत्महत्या के चलते हुई मौतों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा होगी। जिला अस्पताल पुलिस चैकी से प्राप्त इस लिस्ट में चिंता की बड़ी बात यह है कि इनमें 13 व 15 वर्ष की बालिका या किशोरी से लेकर बड़ी संख्या में 19, 21 वर्ष और 23, 24 व 26-30 वर्ष की आयु के युवाओं ने भी आत्मघाती कदम उठाए। फिर चाहे स्कूली बच्ची हो या फिर एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाला शिक्षित-साक्षक व जागरुक स्टूडेंट। ऐसे में कहीं न कहीं यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर खेलने-कूदने में मसरुफ बचपन और अपनी जिंदगी को सुनहरा भविष्य देने की इस उत्साहभरी आयु में उन्हें ऐसा निर्णय क्यों लेना पड़ रहा है, जिसने मृतक के पीछे पूरे परिवार को बिखेरकर रख दिया। साथ ही साथ यह चिंतन-मनन भी लाजमी है कि समाज और हमारी व्यवस्था पर सवालिया निशान छोड़ गए इन लोगों के कदमों को अंत की दिशा में बढ़ने से रोकने के आखिर क्या उपाय हो सकते हैं।

चौंकाने वाले आंकड़े

केवल जिला अस्पताल परिसर पुलिस सहायता केंद्र की डायरी में इस वर्ष खुदकुशी के 40 मामले

जिला अस्पताल परिसर स्थित पुलिस सहायता केंद्र की डायरी में इस वर्ष अब तक खुदकुशी के कुल 40 मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अनुसार जनवरी में जहर खाकर पुरुष (52), महिला (21), फरवरी में जहर खाकर दो महिलाएं (24 व 17 वर्ष), मार्च में तीनों जहर एक महिला दो पुरुष (37, 60, 40 वर्ष), अप्रैल में फांसी लगाकर दो महिला (15, 24 वर्ष) व जहर सेवन कर दो पुरुष (23, 57) वर्ष व दो महिलाओं (38, 50 वर्ष) ने जान दे दी। इसी तरह मई में जहर खाकर पांच पुरुष (47, 40, 42, 30, 26 वर्ष), फांसी लगाकर एक बालिका (13 वर्ष) ने खुदकुशी कर ली। जून में एक पुरुष व एक महिला (64, 21 वर्ष) ने जहर खा लिया। इसके बाद जून में ही चार महिला (19, 58, 45, 55 वर्ष) व एक पुरुष (41) ने जहरसेवन व एक पुरुष (34 वर्ष) ने फांसी लगा ली। जुलाई में तीन पुरुषों (26, 62, 35 वर्ष) व एक महिला (62 वर्ष) ने जहर सेवन लिया। अगस्त में एक महिला (70 वर्ष) व एक पुरुष (25 वर्ष) ने फांसी व दो महिला (32, 22 वर्ष) व तीन पुरुष (55, 46, 70 वर्ष) ने जहर सेवन कर लिया। इसी माह सितंबर में दो पुरुषों में (24 व 19 वर्ष) एक ने फांसी व दूसरे ने जहरसेवन कर आत्महत्या कर ली।


एक्सपर्ट व्यू

पैरेंट्स-टीचर्स व बच्चों में बातों की एक पारदर्शी सेतु का निर्माण का समाधान ढूंढना होगाः डाॅ अवंतिका कौशिल

शासकीय इंजीनियर विश्वेसरैया स्नातकोत्तर महाविद्यालय (ईविपीजी) में मनोविज्ञान की विभागाध्यक्ष डाॅ अवंतिका कौशिल का कहना है कि खासकर किशोर और युवावस्था में बच्चे अनेक प्रकार की विचारों की उधेड़बुन में होते हैं। उनकी मनः स्थिति को समझना माता-पिता, परिवार में जिनके वह करीब हो या शिक्षक के लिए अपेक्षाकृत सरल होता है। सारी सुविधाएं तो होती हैं पर क्वालिटी टाइम नहीं दे पा रहे हैं। बच्चों के सरल मन को समझने के लिए आज पैरेंट्स के पास समय की काफी कमी हो चली है, जिसमें विचार-मंथन की जरुरत है। पैरेंटिंग में सुधार हो, माता-पिता अपने बच्चों की भावनाओं को समझें, बैठकर बातें करें और पारदर्शिता से बातें करें, ताकि कम्युनिकेशन अच्छा हो जाए और बच्चा कोई भी बात छुपाने की बजाय खुलकर साझा करें। ज्यादातर परिवार में माता-पिता जाॅब में व्यस्त हैं, बच्चों की दुनिया भी पढ़ाई, संगीत क्लासेस, स्पोर्ट्स क्लासेस में व्यस्त हो गई है। दोस्तों के पास हर समस्या का समाधान नहीं है। पैरेंट्स-टीचर्स और बच्चों के बीच एक स्वस्थ्य सेतु का निर्माण अनिवार्य है।

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