अक्सर पति व सास झूठी शिकायतों के भय में रहते हैं। आजकल की इन झूठी शिकायतों से सास और पति सतर्क रहें। धारा 498A बेहद कठोर और दुरुपयोग की जाने वाली धारा है। यह रिश्ते पर नींबू निचोड़ने जैसा असर डालती है।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी करते हुए एक बार शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने IPC की धारा 498A (अब भारत न्याय संहिता, 2023 की धारा 84) पर चिंता व्यक्त की है।
यह मामला विवाह के डेढ़ महीने के भीतर पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से जुड़ा था। जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 498ए बहुत कठोर और अक्सर दुरुपयोग की जाने वाली धारा है। यह रिश्ते पर नींबू निचोड़ने जैसा असर डालती है। न्यायालय ने पति-पत्नी व सास को मध्यस्थता में शामिल होने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने साफ किया है कि सच्चे मामलों में पीड़ित महिलाओं की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन झूठे और सामान्य आरोपों से कानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय हाल कुछ वर्षों में कई बार 498A के दुरुपयोग पर चिंता जता चुका है। इन मामलों पर गौर करें…
मई 2024: जस्टिस पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने संसद से आग्रह किया कि नई न्याय संहिता की धारा 85 व 86 (498ए के समान) पर पुनर्विचार किया जाए।
दिसंबर 2024: जस्टिस नागरत्ना की अलग-अलग पीठों ने कहा कि पतियों के पूरे परिवार को फंसाना गलत है और कई बार 498ए को 376, 377 व 506 जैसी धाराओं के साथ दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
फरवरी 2025: कोर्ट ने कहा कि बिना ठोस आरोपों के घरेलू विवादों में आपराधिक कानून लगाना परिवारों के लिए विनाशकारी हो सकता है।
अप्रैल 2025: जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर ने 498ए की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा कि दुरुपयोग की संभावना से कानून असंवैधानिक नहीं हो जाता।
मई व जून 2025: जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने कई मामलों में अस्पष्ट आरोपों पर दर्ज एफआईआर और मुकदमों को रद्द करते हुए कहा कि हर रिश्तेदार को फँसाने की प्रवृत्ति शिकायत की साख को कमजोर करती है।