छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक पति को तलाक देने के फैमिली कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा है कि पति को पालतू चूहा कहना, उसके माता-पिता से दूर रहने के लिए विवश करना मानसिक क्रूरता को रेखांकित करता है है। पत्नी ने दबाव बनाया कि पति अपने माता-पिता को छोड़ कर केवल उसके साथ रहे।
जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिविजन बेंच ने कहा,…
प्रतिवादी और उसके परिवार के मौखिक बयान, जबरदस्ती और अपीलकर्ता द्वारा की गई आलोचनाएं सीधे तौर पर क्रूरता की कानूनी परिभाषा में आती हैं। अपीलकर्ता द्वारा पूछताछ में किए गए अपने स्वीकारोक्तियां, जिसमें उसने अपने परित्याग की पुष्टि की प्रतिवादी के पक्ष को और मजबूत करती हैं। अतः यह अपील विफल होनी चाहिए। पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक का दावा साबित किया और पत्नी ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए अपना दावा सिद्ध नहीं किया।
कोर्ट ने अपीलकर्ता पत्नी के उस संदेश को भी नोट किया, जिसमें उसने लिखा था,
“अगर आप अपने माता-पिता को छोड़कर मेरे साथ रहना चाहते हैं तो जवाब दें अन्यथा मत पूछो।”
डिविजन बेंच ने कहा,
“हालांकि यह संदेश शर्तीय है, यह स्पष्ट करता है कि उसने पति से उसके माता-पिता को छोड़ने की लगातार मांग की। यह व्यवहार निर्दोष नहीं माना जा सकता और मानसिक क्रूरता को रेखांकित करता है। विशेषकर भारतीय संयुक्त परिवार की परंपराओं में, जहां पति को उसके माता-पिता से दूर रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता माना जाता है।
अब यह समझें कि क्या है मामला
अपीलकर्ता पत्नी और पति का विवाह 2009 में हुआ और दंपती का एक बेटा है। पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर विवाह विच्छेद की याचिका दायर की। याचिका में यह दावा किया गया कि पत्नी लगातार पति को उसके माता-पिता के खिलाफ भड़काती रही और उनसे अलग रहने का दबाव डालती रही। इसके अलावा, पत्नी ने उसे पालतू चूहा कहा। बच्चे के जन्म के बाद पत्नी अपने माता-पिता के घर चली गई और फिर कभी वापस नहीं आई।
पत्नी ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए दावा किया कि पति ने उसे भावनात्मक और आर्थिक रूप से अनदेखा किया। फैमिली कोर्ट ने 2019 में तलाक का आदेश दिया था।