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Korba : समाजशास्त्री डॉ प्रीति के ताजा रिसर्च के मुताबिक, “दादाजी” की तुलना में ज्यादा खुश रहती हैं “हमारे शहर की दादियां”

आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर विशेष वृद्धजनों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति पर कोरबा जिले के विशेष संदर्भ में समाजशास्त्री डॉ प्रीति जायसवाल की नई रिसर्च, यह भी सामने आया कि कोरबा नगर के दस वार्डों पर फोकस कर 60 वर्ष से अधिक आयु के वृद्ध एवं रिटायर्डकर्मियों पर सर्वे किया गया। रिटायर्ड कर्मियों ने कहा कि सरकार की योंजनाओं के माध्यम से लाभ मिलना काफी मुश्किल है। कभी पेपर वर्क तो कभी अन्य कारणों से सरकारी अधिकारी ही उन्हें इनके लाभ वंचित कर देते हैं, पर कठिनाई का हल नहीं करते।

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आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर विशेष

वृद्धजनों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति पर कोरबा जिले के विशेष संदर्भ में समाजशास्त्री डॉ प्रीति जायसवाल की नई रिसर्च..,


कोरबा। मिनीभारत की पहचान रखने वाले पावरसिटी कोरबा में एक ताजा रिसर्च के रोचक नतीजे सामने आए हैं। इस रिसर्च के मुताबिक कोरबा शहर के वृद्धजनों में पुरुषों के मुकाबले परिवार की बुजुर्ग महिलाओं का वक्त ज्यादा खुशनुमा बीतता है। जहां दादियों को पारिवारिक व भावनात्मक पहलुओं से जुड़े रहने का फायदा मिलता है। वहीं दूसरी ओर दादाजी, यानी पुरुष वृद्धजन अपेक्षाकृत सामाजिक व आर्थिक कठिनाइयों के चलते कम खुश रह जाते हैं। कोरबा नगर के विशेष संदर्भ में अपने शोध के जरिए यह निष्कर्ष समाजशास्त्री डाॅ प्रीति जायसवाल ने ढूंढ़ निकाला है। साथ ही उन्होंने इस आयुवर्ग की मुश्किलों का हल प्राप्त करने की दिशा में पहल करते हुए कुछ कारगर सुझाव भी पेश किए हैं।

वृद्धजनों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर कोरबा जिले के विशेष संदर्भ में यह शोध और उसका परिणाम साझा करते हुए डाॅ प्रीति जायसवाल ने कहा कि अपने रिसर्च के दौरान उन्होंने 200 महिला व 200 पुरुष समेत कुल 400 बुजुर्गों से उनके दिल का हाल जानने का प्रयास किया। सात साल कमला नेहरु महाविद्यालय कोरबा व उसके बाद अग्रसेन में अतिथि प्राध्यापक रहीं डाॅ प्रीति ने पाया कि महिला वृद्ध जहां स्वयं को घर-परिवार, रिश्तेदार और पड़ोसियों के मध्य व्यस्त रखकर मन को खुश रख पाती हैं, इस कौशल के अभाव में ज्यादातर पुरुष वृद्ध अकेलापन और अपनी चिंताओं के बीच घिरे रहकर परेशान होने विवश हो जाते हैं। अपने पति दिलेन्द्र कुमार जायसवाल, परिवार व मित्रों के सहयोग और भारती विश्वविद्यालय दुर्ग में समाजशास्त्र एवं समाज कार्य विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ स्नेह कुमार मेश्राम के मार्गदर्शन में डाॅ प्रीति ने यह शोध पूर्ण किया। साथ ही वृद्धजनों को इन समस्याओं से राहत की राह सुझाते हुए कुल छह बिंदू बताए हैं। प्रदेश में वृद्धजन आयोग की स्थापना, सुविधाजनक सार्वजनिक आवास या देखरेख केंद्र, उचित रोजगार नीति, स्वास्थ्य व मनोरंजन गतिविधियां, पुनर्वास, अधिकारों के संरक्षण के लिए विधिक सहायता जैसे विकल्प निकाले जा सकते हैं।


उच्च और निम्न की बजाय मध्यम वर्गीय बेहतर

डाॅ प्रीति का कहना है कि वैश्विक अनुपात में भारत में पारिवारिक सामंजस्य की स्थिति अच्छी है। उनके शोध में सभ्रांत व उच्च आय वर्ग, मध्यम व निम्न वर्ग शामिल किए। सभ्रांत वर्ग के वृद्ध आर्थिक रुप से सक्षम व निश्चिंत, लेकिन पारिवारिक चिंताओं से घिरे रहने के कारण परेशान रहते हैं। ठीक इसके विपरीत निम्न आय वर्ग के बुजुर्ग पारिवारिक नहीं, आर्थिक मुश्किलों से जूझने विवश हैं। इस मामले में मध्यम वर्ग के बुजुर्ग सबसे ज्यादा खुश मिले।


रिटायर्ड वृद्ध विभिन्न दफ्तर के अफसरों से दुखी, योजनाओं का लाभ कठिन

इस रिसर्च में कोरबा नगर के दस वार्डों पर फोकस कर 60 वर्ष से अधिक आयु के वृद्ध एवं रिटायर्डकर्मियों पर सर्वे किया गया। रिटायर्ड कर्मियों ने कहा कि सरकार की योंजनाओं के माध्यम से लाभ मिलना काफी मुश्किल है। कभी पेपर वर्क तो कभी अन्य कारणों से सरकारी अधिकारी ही उन्हें इनके लाभ वंचित कर देते हैं, पर कठिनाई का हल नहीं करते। हालांकि शोध में परिवार के मुखिया की भूमिका में सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि संतोषजनक पाई गई। पारिवारिक सामंजस्य स्तर भी अच्छा मिला।


बचपन से ही बुजुर्गों को अपनी परेशानियों से अकेले लड़ते देखा

डाॅ प्रीति ने बताया कि बचपन से ही उन्होंने बुजुर्गों को अपनी परेशानियों से अकेले लड़ते देखा है। एक वास्तविक उदाहरण यह रहा कि बहू ने वृद्ध सास जहर दे दिया, एक बेटे ने मां को मार डाला। कई बुजुर्गों को तो परेशानियों का भान ही नहीं। यही वजह है जो शोध के लिए उन्होंने यह विषय चुना। उन्होंने भारती विश्वविद्यालय दुर्ग में समाजशास्त्र एवं समाज कार्य विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और अपने शोध निदेशक डाॅ स्नेह कुमार मेश्राम के मार्गदर्शन में यह शोध पूर्ण किया।

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