फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी देने के मामले में CCL के GM समेत 22 को सजा सुनाई है। इस बहुचर्चित मामले में 29 साल बाद फैसला आया। इतना ही नहीं, सीसीएल के जीएम सहित 22 को कारावास की सजा सुनाई गई है। पिपरवार परियोजना में फर्जी दस्तावेज पर नौकरी का मामला उजागर हुआ। जमीन अधिग्रहण में मूल रैयत की बजाय दूसरों को नौकरी दी गई थी।
राँची(theValleygraph.com)। सीबीआई (CBI) के विशेष न्यायाधीश पीके शर्मा की कोर्ट ने पिपरवार क्षेत्र में जमीन अधिग्रहण के मूल रैयत की जगह फर्जी दस्तावेज पर सीसीएल (CCL Jobs Scam) में नौकरी लेने से जुड़े मामले में 29 साल बाद फैसला सुनाया है। कोर्ट ने शुक्रवार को सीसीएल के तत्कालीन जीएम हरिद्वार सिंह और उनके बेटे सहित 22 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए तीन-तीन साल कारावास की सजा सुनाई है।
उल्लेखनीय होगा कि आम्रपाली कोल परियोजना में भी फर्जी दस्तावेज के आधार पर नौकरी लेने हेतु बाहरी तंत्र के लोग सक्रिय बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि अवैध पेपर बनाकर नौकरी के लिए करीब 50 लोग कतार में हैं। रजिस्टर टू में छेड़-छाड़ कर विस्थापित रैयतों के नाम- खाता नम्बर हटा कर भू-माफियाओं ने अपने सगे संबंधियों का नाम करवा रखा है। आम्रपाली कोल परियोजना में भी केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा स्थानीय रैयत बड़ा खुलासा हो सकता है।
झारखंड में नौकरी के लिए फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल से जुड़े मामले में 29 साल बाद फैसला आया है। सीबीआई की विशेष अदालत ने सीसीएल के तत्कालीन जीएम हरिद्वार सिंह और उनके बेटे सहित 22 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए तीन-तीन साल कारावास की सजा सुनाई है। इस घोटाले में सीसीएल के तत्कालीन सीनियर पर्सनल ऑफिसर की भी मिलीभगत सामने आई है।
कोर्ट ने हरिद्वार सिंह पर 58 हजार और 21 अभियुक्तों पर आठ-आठ हजार का जुर्माना लगाया
कोर्ट ने हरिद्वार सिंह पर 58 हजार और 21 अभियुक्तों पर आठ-आठ हजार का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने मामले के दो आरोपितों को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। मामले में सीबीआइ ने तीन को सरकारी गवाह बनाया था और एक का केस बंद किया गया था। CBI ने 1998 में दर्ज की प्राथमिकी सीसीएल रांची के तत्कालीन सीनियर पर्सनल ऑफिसर की मिलीभगत से 28 ऐसे लोगों को सीसीएल में नौकरी दी गई, जिनकी जमीन का अधिग्रहण ही नहीं किया गया था। फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद सीबीआई ने वर्ष 1998 में प्राथमिकी दर्ज की थी। सीबीआइ की ओर से लोक अभियोजक खुशबू जायसवाल ने कोर्ट में पक्ष रखा। जमीन अधिग्रहण पूरा होने के बाद नौकरी को लेकर एक प्रस्ताव सीसीएल मुख्यालय, रांची भेजा गया। वर्ष 1995 में कुल 18 लोगों को नौकरी दी गई। वर्ष 1996 में 10 लोगों को सीसीएल में नौकरी दी गई। फर्जी कागजात के आधार पर कुल 28 लोगों को नौकरी दी गई। फर्जीवाड़े का खुलासा वर्ष 1998 में उस समय हुआ जब वास्तविक हकदार जमीन अधिग्रहण का कागजात लेकर नौकरी मांगने आया। सीबीआइ ने 18 अगस्त 1998 को प्राथमिकी दर्ज की। सीबीआइ ने जांच पूरी करते हुए तीन मई 2003 को चार्जशीट दाखिल की थी।
कोर्ट ने इन अभियुक्तों को सुनाई सजा
इस मामले में हरिद्वार सिंह, उनका बेटा प्रमोद कुमार सिंह, मनोज कुमार सिंह, कृष्ण नंद दुबे, मुरारी कुमार दुबे, मनोज पाठक, प्रमोद कुमार, दिनेश राय, बैजनाथ महतो, हेमाली चौधरी, बिनोद कुमार, जयपाल सिंह, बिपिन बिहारी दुबे, बंसीधर दुबे, निरंजन कुमार, अजय प्रसाद, केदार प्रसाद, ललित मोहन सिंह, संजय कुमार, मनदीप राम, परमानंद वर्मा एवं गुरुदयाल प्रसाद को सजा सुनाई गई है।