तालाब में नहा रहे भंगू नामक एक ग्रामीण को चार आंखों वाली दुर्लभ मछली मिली। लोग ऐसी मछली देख हैरान रह गए और यह खबर मिलते ही उसे एक झलक देखने भारी भीड़ उमड़ पड़ी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह एक अक्वारियम फिश है और ज्यादा बड़ी होने पर लोग उसे नदी या तालाब में छोड़ देते हैं। इसलिए यह कोई रोचक बात नहीं माना जाना चाहिए। हालांकि यह मछली एक इनवेसिव स्पीशीज यानी आक्रामक प्रजाति मानी जाती है।
कोरबा। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में 4 आंखों वाली मछली देखने को मिली है। हरदी बाजार स्थित सराई सिंगार गांव में इस मछली के मिलने से हलचल मच गई। 30 जून को राधा सागर तालाब में स्थानीय निवासी भंगू निर्मलकर को नहाते समय यह विचित्र मछली मिली। इस मछली का मुंह असामान्य रूप से बड़ा है।
भंगू रात में मछली को अपने घर ले गए। अगली सुबह जैसे ही इस खबर का पता चला, आसपास के गांवों से लोग इसे देखने पहुंचने लगे।
मछली पालन विशेषज्ञों के मुताबिक, यह मछली आमतौर पर एक्वेरियम में पाली जाती है। जब इसका आकार बड़ा हो जाता है, तब लोग इसे तालाब या नदी में छोड़ देते हैं। यह एक दुर्लभ प्रजाति है जो सामान्यतः प्राकृतिक जल स्रोतों में नहीं मिलती।
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि कुछ मछली प्रजातियों में केमिकल पाए जाते हैं, जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए ऐसी मछलियों को खाने से बचना चाहिए।
ग्रामीणों की भावनाओं को देखते हुए मछली को वापस तालाब में छोड़ दिया गया है। यह घटना पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है।
सक्शन कप की तरह चूसने वाला अनोखा मुंह, जिसके कारण नाम, शरीर पर बख्तर बंद कैसा कवच
सकरमाउथ कैटफ़िश का नाम उनकी एक खास बनावट वाले मुंह के कारण पड़ा है जो चूसने वाले कप की तरह दिखता है। इस मुंह का उपयोग मछली पानी के भीतर सतहों से चिपकने और शैवाल या अन्य खाद्य पदार्थों को खुरच कर खाने के लिए करती है। इस मछली का मुंह एक सक्शन कप की तरह काम करता है, जिससे यह चट्टानों, पौधों और अन्य सतहों से चिपक सकती है।
विशेषज्ञों ने कहा – मूल रूप से दक्षिण अमेरिका की अमेजॉन नदी की पछली, शोध की जरूरत
कोरबा में सकरमाउथ कैटफिश मिलने से प्राणी विशेषज्ञ भी हैरत में हैं। देखने में काफी खूबसूरत यह मछली मांसाहारी होती है, जो मूल रूप से दक्षिण अमेरिका की अमेजॉन नदी में पाई जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह जानने का प्रयास होना चाहिए कि आखिर दक्षिण अमेरिका के इलाके में पाई जाने वाली यह प्रजाति आखिर कोरबा के एक तालाब तक कैसे पहुंच गई।
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