8 से 9 घंटे की कठिन चिकित्सा ड्यूटी में मरीजों की सेवा के साथ एचटीपीपी पश्चिम के विभागीय चिकित्सालय में पदस्थ प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ तथा अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ मंजुला साहू ने छुट्टी के वक्त में अपने लिए कुछ व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी तय कर रखी है। वह ड्यूटी के बाद के खाली वक्त में बस्तियों और गांवों में जाकर लोगों से मिलती हैं। खासकर महिलाओं को वह अपनी सेहत का ख्याल रखने को प्रेरित तो करती ही हैं, साथ में पपॉपुलेशन प्रॉब्लम से निपटने और अपने बच्चों को बेहतर कल के लिए तैयार करने जागरूक भी कर रही हैं।
कोरबा। निश्चित तौर पर चिकित्सा का प्रोफेशन समाज के प्रत्येक तबके से सीधे जुड़ जाने का होता है। समष्टि वर्ग के लिए बतौर चिकित्सक मानव सेवा का दायित्व निभा रहीं एक डाॅक्टर ने अपने कर्तव्य के इतर भी अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियां तय कर रखी हैं। वह न केवल मर्ज लेकर उनके पास आने वाली मरीजों को स्वस्थ व जागरुक करती हैं, आस-पास के गांव और स्लम बस्तियों जाकर जनसंख्या विस्फोटक की भावी कठिनाइयों से रुबरु कराकर जागरुक कर रहीं हैं। इसके लिए महिला चिकित्साधिकारी सतत जनसंपर्क करती हैं। अपनी ड्यूटी के बाद के समय में और छुट्टी के दिनों में मिलने वाली राहत में भी समाज के अजागरुकता एवं अभाव से जूझ रहे लोगों के बीच पहुंचकर बैठकी लगाने पहुंच जाती हैं।
इस पुनीत प्रयास में एचटीपीपी पश्चिम के विभागीय चिकित्सालय में पदस्थ प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ तथा अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ मंजुला साहू जुटी हुई हैं। डाॅ मंजुला प्रतिदिन की 8 से 9 घंटे की अपनी कठिन ड्यूटी के बाद और छुट्टियों के दिन मिलने वाला खाली वक्त का उपयोग आस-पास के गांव-बस्तियों में जाकर महिलाओं को जागरुक करने में करती हैं। स्लम बस्तियों में वह समय-समय पर उनके बीच पहुंचकर उन्हें समझाती हैं कि देश के अच्छे कल के लिए जनसंख्या नियंत्रण कितना जरुरी है। साथ ही इस बात पर भी फोकस करती हैं कि जागरुकता के अभाव में जिन परिवारों में दो से ज्यादा संतान हैं, वे अब किस तरह से अपने बच्चों को अच्छी तालीम देकर शिक्षित व जागरुक बनाएं, ताकि जब वे कल के भारत के नागरिक बनकर उभरें, तो देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें। खासकर माताएं अपने बेटों को महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने और उनके मन-मस्तिष्क में महिलाओं के प्रति समाज में बराबरी का मान रखने का दृष्टिकोण विकसित करने का फर्ज निभाएं। किसी भी परिस्थिति में बच्चे स्कूल और शिक्षा से विमुख न हों और आने वाली जनरेशन पूर्ण शिक्षित व पूर्ण जागरुक बनकर देश को सुनहरे कल में लेकर जाने के काबिल बन सकें।
माता पिता के लिए आज से ही बच्चों को अच्छी तालीम देकर अच्छे कल की जुगत भी जरुरी है: डॉ मंजुला साहू
जनसंख्या विस्फोट की बातें तो सभी जानते हैं, लेकिन उस पर नियंत्रण की कवायद भी उतना ही आवश्यक है। साथ में यह भी जरुरी है कि जिन परिवारों में दो ज्यादा संतान हैं, वे भी अपने बच्चों को कल के भारत के जिम्मेदार नागरिक के रुप में खड़ा करने हर संभव प्रयास करें। तभी आज के यह बच्चे या किशोर आने वाले कल में देश के जिम्मेदार नागरिक की भूमिका अपनाते हुए स्वयं जागरुक बनकर पूरी जेनरेशन को सुनहरे कल में परिवर्तित कर सकते हैं। यही उद्देश्य लेकर वह अपनी चिकित्सा ड्यूटी के बाद अपने मरीजों के माध्यम से जनसंपर्क कर जागरुकता के प्रयास में भी जुट जाती हैं।