जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग दिल्ली (उत्तर) ने एक मामले में सैमसंग इंडिया और उसके अधिकृत सेवा केंद्र को उस मोबाइल फोन को बदलने में असफल रहने के लिए दोषी ठहराया जिसमें निर्माण दोष पाया गया था। सैमसंग इंडिया को आदेश दिया गया है कि शिकायतकर्ता को 30,999 रुपए की वापसी करे। साथ ही आयोग ने मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए भी 25,000 रुपए की क्षतिपूर्ति प्रदान करने का निर्देश दिया है। आयोग की पीठ में अध्यक्ष दिव्या ज्योति जयपुरियार, सदस्य अश्वनी मेहता और सदस्य हरप्रीत कौर शामिल थीं।
आयोग के समक्ष यह मामला 22 मार्च 2024 को पेश किया गया। शिकायतकर्ता ने क्रोमा नई दिल्ली से सैमसंग A35 मोबाइल (मॉडल नंबर स्म-ए356ए/डीएस) 30,999 रुपए देकर खरीदा था।
शिकायत हुई कि मोबाइल फोन क्रय करने के तीसरे दिन ही उस की एलसीडी डिस्प्ले पर एक लाइन दिखने लगी। क्रय करने के 10वें दिन शिकायतकर्ता समस्या के निराकरण के लिए विक्रेता के पास गया और शिकायत की गई, जहां से उसे सैमसंग सेवा केंद्र जाने की सलाह दी गई।
उसी दिन शिकायतकर्ता सेवा केंद्र गया। समस्या को अस्थायी रूप से ठीक किया गया, लेकिन खराबी के जारी रहने पर 3 अप्रैल 2024 को शिकायतकर्ता की पत्नी मोबाइल फोन लेकर सेवा केंद्र पहुंची, जहां यह बताया गया कि मोबाइल को आगे निरीक्षण के लिए नोएडा सेवा केंद्र भेजा जाएगा।
6 अप्रैल 2024 को शिकायतकर्ता से बॉक्स, पिन, IMEI स्टिकर और केबल जमा करने को कहा गया और बताया गया कि मोबाइल में निर्माण दोष है। शिकायतकर्ता ने अनुरोध किया कि फोन और बॉक्स के विवरण का मिलान किया जाए, पर उसकी बात नहीं मानी गई। साथ ही कहा गया कि डेड ऑन एराइवल (DOA) प्रमाणपत्र के बिना मोबाइल बदला नहीं जा सकता। शिकायतकर्ता के अनुसार सेवा केंद्र मोबाइल बदलने से बच रहा था।
कई बार ग्राहक सेवा और केंद्र के चक्कर लगाने के बाद भी मोबाइल नहीं बदला गया और शिकायतकर्ता को घंटों इंतजार करना पड़ा। अंततः शिकायतकर्ता को मजबूर होकर 10 हजार रुपए में दूसरा मोबाइल खरीदना पड़ा। इस पर उसने निर्माता, सेवा केंद्र और विक्रेता के खिलाफ शिकायत दायर की।
सेवा केंद्र की ओर से कोई उपस्थिति दर्ज नहीं की गई और मामला एक्स-पार्टी चला। वहीं, विक्रेता ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत निर्धारित समय सीमा में उत्तर दाखिल नहीं किया, जिसके चलते उसका लिखित बयान दाखिल करने का अधिकार समाप्त कर दिया गया।
सैमसंग इंडिया की दलील
सैमसंग ने दलील दी कि वह विश्वस्तरीय इलेक्ट्रॉनिक निर्माता है और उसके सभी उत्पाद गुणवत्ता जांच और परीक्षण से गुजरते हैं। मोबाइल की बिक्री स्वीकार की गई। कहा गया कि मोबाइल पर 1 वर्ष की वारंटी है और यदि शर्तों का उल्लंघन हुआ तो वारंटी अमान्य होगी। यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता को सभी सेवाएं दी गईं और शिकायत खारिज होनी चाहिए।
आयोग का अवलोकन
आयोग ने शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों जैसे टैक्स चालान, वारंटी नीति, मोबाइल की तस्वीरें और ईमेल का अध्ययन किया। पाया गया कि वारंटी नीति के अनुसार, खरीद की तारीख से 14 दिन के भीतर मोबाइल व सभी एक्सेसरीज़ अधिकृत सेवा केंद्र में जमा करने होते हैं। शिकायतकर्ता ने समय सीमा में सेवा केंद्र से संपर्क किया था।
शर्तों के अनुसार, वारंटी तभी शून्य होगी जब मूल सीरियल नंबर उत्पाद से हटा दिया जाए। आयोग ने पाया कि मोबाइल और बॉक्स पर अंकित आईएमइआई नंबर समान हैं। नीति में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि उपभोक्ता को मोबाइल के पीछे आईएमइआई स्टिकर लगाना आवश्यक है।
इसलिए, आयोग ने माना कि उपभोक्ता से मोबाइल के साथ आईएमइआई स्टिकर प्रस्तुत करने की मांग मनमानी थी। अतः सैमसंग इंडिया और उसके अधिकृत सेवा केंद्र को सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी ठहराया गया।
साथ ही आयोग ने सैमसंग इंडिया को आदेश दिया कि शिकायतकर्ता को 30 हजार 999 रुपए की वापस करे और मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के एवज में 25 हजार की क्षतिपूर्ति देने का निर्देश दिया।