पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय में पेश हुई इस स्थिति पर जस्टिस संजय वशिष्ठ ने कहा कि “ऐसी प्रथा दो कारणों से पूरी तरह अस्वीकार्य है।
पहला, अदालत में बहस के दौरान मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल अशिष्ट और गैर-पेशेवर रवैया दर्शाता है, जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
दूसरा, आईपैड या लैपटॉप, जिन्हें कार्यालय व्यवस्था और केस फाइलों के साथ एकीकृत पेशेवर उपकरण माना जाता है, उनके विपरीत, मोबाइल फ़ोन को अदालती कार्यवाही में बहस के दौरान इस्तेमाल के लिए स्वीकार्य डिवाइस नहीं माना जाता है।”
न्यायालय ने सख्त कदम उठाते हुए बहस के दौरान अदालत के सवालों के जवाब देने के लिए अपने मोबाइल फ़ोन पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल और गूगल (गूगल) का इस्तेमाल करने वाले वकीलों को फटकार लगाई।
इस आचरण को गंभीरता से लेते हुए वकील का मोबाइल डिवाइस कुछ समय के लिए ज़ब्त कर लिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसी प्रथाएं “अस्वीकार्य” हैं।
इस प्रकार के एक अन्य मामले में जब अदालत ने वकील से एक प्रश्न पूछा तो उसने उत्तर देने के लिए अपना मोबाइल फ़ोन निकाला, जिस पर न्यायाधीश ने कहा,
“वकील को सुनवाई से पहले ही बहस के लिए मामला तैयार करते समय अपना मोबाइल फ़ोन ले लेना चाहिए था।”
अदालत ने कहा कि वह “सुनवाई के दौरान, कोर्ट के ठीक सामने बार के संबंधित सदस्यों द्वारा मोबाइल फ़ोन का बार-बार इस्तेमाल किए जाने से चिंतित और परेशान है। यहां तक कि कभी-कभी कार्यवाही को उत्तर की प्रतीक्षा में रोकना पड़ता है, जो ऐसे मोबाइल फ़ोन से जानकारी प्राप्त करने के बाद ही आता है।”
उल्लेखनीय होगा कि एक मामले में ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई थी और एक मोबाइल फ़ोन ज़ब्त कर लिया गया था।
अतः कोर्ट ने कहा कि वर्तमान आदेश भी उपलब्ध कराया जाए ताकि बार एसोसिएशन के अध्यक्ष/सचिव सदस्यों को सूचित कर सकें कि वे सुनवाई के दौरान एआई/ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म/गूगल जानकारी के माध्यम से खुद को अपडेट करने के लिए मोबाइल फ़ोन के बार-बार उपयोग के कारण अदालत को कोई कठोर आदेश पारित करने के लिए बाध्य न करें।