चार्टर्ड अकाउंटेंट से जानिए आम आदमी की अपेक्षाएं
कोरबा(thevalleygraph.com)। आम तौर पर जिस रफ्तार से रोजमर्रा के खर्चे और घर का बजट बढ़ता जा रहा, उस गति से परिवार की आमदनी में इजाफा दर्ज नहीं होता। महंगाई की मार ने आटे-दाल की रसोई से लेकर पेट्रोल-डीजल और आने-जाने का किराया तक, सब कुछ बेहाल कर रखा है। खासकर मध्यम आय वर्ग सबसे ज्यादा दबाव में होता है, जिस पर टैक्स के भार की मार सबसे ज्यादा पड़ती है। यही वजह है जो हर बार बजट से दो बड़ी आस वह करता है, पहला चीजें सस्ती व महंगाई कम हो और दूसरी यह कि टैक्स में बड़ी रियायत मिल जाए तो तेढ़ी हो रही कमर को थोड़ी राहत मिल सके। एक फरवरी को केंद्र का बजट पेश होने जा रहा है और आम आदमी से जुड़े इस मसले विषय के जानकारों से बात की गई। शहर के ख्यातिलब्ध चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) से यह जानने का प्रयास किया गया कि आखिर बजट से आम आदमी को क्या आस है। लोगों के नजरिए को फोकस करते हुए उन्होंने भी यही अपेक्षा व्यक्त की है कि टैक्स पर रियायत मिले, यही सबसे बड़ी उम्मीद आम नागरिकों की होती है।
क्या कहते हैं विषय विशेषज्ञ
सर्विसपेशा पर सबसे ज्यादा दबाव, विशेष राहत की अपेक्षा: अमर अग्रवाल
सीए अमर अग्रवाल का कहना है कि सबसे प्रमुख बात यही है कि आयकर कम हो। बजट से आम नागरिकों की यही मंशा रहती है कि डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स में रियायत मिल जाए। विशेषकर इनकम टैक्स के स्लैब को बढ़ा दिया जाए। ढाई लाख या पांच लाख तक की आमदनी में जो छूट है, उसकी सीमा को बढ़ाकर कम से सात लाख तक कर दिया जाए, ऐसी उम्मीद पब्लिक करती है। महंगाई बढ़ने की वजह से सभी के घर खर्च भी बढ़ गए हैं, जिसकी वजह से वे चाहते हैं कि छूट का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए। दूसरी बात ये कि सर्विसपेशा को रियायत ज्यादा चाहिए होता है, क्योंकि सबसे ज्यादा टैक्स का दबाव इस वर्ग के ऊपर आता है। ऐसे में सर्विसपेशा वर्ग को ऐसी अपेक्षा भी है कि उनके लिए कुछ ऐसी विशेष रियायत की सुविधा दी जाए, जैसे 50 हजार रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन है, उसे या तो बढ़ा दिया जाए या फिर उनकी बेसिक लिमिट 5 से बढ़ाकर सात लाख या उससे अधिक कर दी जाए, तो बड़ी राहत होगी। इसके अलावा जीएसटी की दर में कमी होती है, तो महंगाई भी कम होगी।
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विक्रेता रिटर्न फाइल नहीं करने से क्रेता को नुकसान, जीएसटी के इस सेक्शन में मिले रियायत: अनंत केजरीवाल
सीए अनंत केजरीवाला ने बताया कि जीएसटी में बहुत सारी रियायतों की आवश्यकता है। जैसे जीएसटी में एक सेक्शन ऐसा है, जो यह कहता है कि इस मसले को ऐसे समझें गुड्स लिया और उसके एवज में कीमत का भुगतान कर दिया, तो विक्रेता ने अगर उस सामग्री के लिए जीएसटी नहीं चढ़ाया तो उसके लिए क्रेता को दोबारा जीएसटी भरना पड़ता है। इसमें रियायत मिलनी चाहिए। यह एक बहुत बड़ा उपनियम है, जिसके कारण सभी परेशान हो रहे हैं और अदालतों के अंदर बड़ी संख्या में केसेस पेंडिंग हैं। क्रेता ने विधिवत पर्चेस किया पर विक्रेता ने रिटर्न नहीं भरा और ठीक से फाइलिंग नहीं की, तो गलती न होने के बाद भी उसका भुगतान करना पड़ रहा है। जब क्रेता ने बिल की राशि का भुगतान कर दिया है, तो उसे उसका इनपुट भी मिलना चाहिए। इस तरह से किसी विक्रेता द्वारा रिटर्न फाइल नहीं किए जाने का भुगतान क्रेता को करना पड़ रहा है, उसको इनपुट नहीं मिल रहा है। इसके चलते उन्हें काफी टैक्स भरना पड़ जाता है। इस सेक्शन में रियायत मिलनी चाहिए।
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दस लाख तक की आय, कर मुक्त कर दी जाए : अमोल कुमार
सीए अमोल कुमार के अनुसार आम नागरिक तो यही चाहते हैं कि कम से कम टैक्स हो और ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं शासन से मिले। टैक्स में और अधिक रियायत दी जानी चाहिए, बल्कि दस लाख तक टैक्स फ्री कर दिया जाना चाहिए। जीएसटी में भी जो हायर स्लैब है, 28 प्रतिशत का, उसे भी कम किया जाए। जरूरतों की जरूरी सामग्रियों, जिनमें जीएसटी अभी भी लगाया जा रहा है, बढ़ी कीमतों, उसे या तो कम किया जाए या हटा दिया जाए। जहां तक इंफ्रास्ट्रक्चर की बात है, तो वह शासन अपने बजट के अनुरूप ही तैयार करता है। पर मेरे विचार में आम आदमी शासन से मिल रही सुविधाओं की अपेक्षा टैक्स की अदायगी अधिक कर रहा है। इस पर संतुलन कायम करना लाजमी हो जाता है। आम नागरिक के नजरिए से केंद्र के इस बजट में इन चीजों को ध्यान दिया जाएगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। कुछ चीजें जो 18 प्रतिशत में हैं, उन्हें अगर 12 प्रतिशत में लाया जाए, तो निश्चित ही लोगों को काफी राहत मिल सकेगी। इस मामले में भी आम लोगों को काफी अपेक्षाएं हैं।
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