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सिंगल फैमिली में ढाई साल तक बच्चों के बोलने की क्षमता में बाधक बन रहे उनके फेवरेट टीवी कार्टून्स

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स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति मेडिकल कॉलेज सह जिला अस्पताल के ईएनटी विभाग प्रमुख डॉ हरबंश सिंह के अनुसार औसतन हर माह पहुंच रहे 20 मामले। दो से ढाई साल टाई की उम्र में भी बोलना नहीं सीख रहे नन्हें-मुन्ने, लेनी पड़ रही आडियोलॉजिस्ट की स्पीचथैरेपी की मदद।

जब कभी हम घर के काम-काज में व्यस्त हों, तो बच्चों का पास आकर लिपट जाना, अंगुली पकड़कर खींचना, बार-बार अपने खेलने की चीजें मांगने से हम परेशान हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें उनकी फेवरेट कार्टून चैनल में व्यस्त कर फिर से काम में जुट जाते हैं। अक्सर अपनाई जानी वाली इस आसान जुगत से बच्चे टीवी-फिल्मों और खासकर कार्टून्स में ऐसे रम जाते हैं, कि बोलने की सीख विकसित नहीं हो पा रही। नई परेशानी बनकर सामने आ रहे ऐसे उदाहरण जिला चिकित्सालय के ईएनटी विभाग में लगातार दर्ज हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार यहां औसतन प्रतिमाह दो से ढाई साल की उम्र के 20 ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के साथ पहुंच रहे हैं, जिनमें सही वक्त पर बोलना न सीखने की शिकायत की जा रही है। इस समस्या से निपटने अब विभाग को आडियोलॉजिस्ट अपाइन कर स्पीचथैरेपी की मदद लेनी पड़ रही है और ऐसे समस्या अगर आपकी भी हो, तो इस सुविधा का लाभ लिया जा सकता है।

कोरबा(theValleygraph.com)। स्व. बिसाहूदास महंत स्मृति मेडिकल कॉलेज सह जिला चिकित्सालय में कान-नाक व गला रोग विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक दो से ढाई वर्ष तक की आयु में बच्चों के भीतर बोलने की सीख विकसित होना शुरू हो जाना चाहिए। पर बड़ी संख्या में ऐसे मामले आ रहे हैं, जिनमें इस आयु के बच्चे बोल नहीं पा रहे हैं। पैरेंट्स की काउंसलिंग और चर्चा के दौरान अब तक के अध्ययन में यही पता चलता है कि इसके पीछे का बड़ा कारण बच्चों का टीवी-फिल्मों, मोबाइल और खासकर कार्टून में रमे रहना प्रतीत हो रहा है। कार्टून और फिल्में लगातार देखते रहने की आदत के चलते बच्चे बोलना नहीं सीख पा रहे हैं। इसके लिए अस्पताल के ईएनटी विभाग में खास छोटी उम्र के ऐसे बच्चों के लिए, जो बोल न पाने की समस्या से गुजर रहे हैं, उनमें सुधार के लिए आॅडियोलॉजिस्ट अपॉइन किए गए हैं, जो स्पीच थैरेपिस्ट के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इसकी सुविधा प्रदान की जा रही है। विभाग के अनुसार औसतन प्रतिमाह 20 बच्चे ऐसे आ रहे हैं, जिनके लिए स्पीचथैरेपी की मदद लेनी पड़ रही है। विभाग के अनुसार खासकर वर्किंग फैमिली, जिसमें माता-पिता दोनों जॉब में हैं, उनके यहां के बच्चों में यह समस्या ज्यादा सामने आ रही है। ऐसे बच्चों को ट्यूशन की तरह पढ़ा रहे हैं और स्पीचथैरेपी दे रहे हैं।

माता-पिता दोनों वर्किंग हैं, ऐसे एकल परिवारों में सबसे ज्यादा आ रही शिकायत : डॉ हरबंश सिंह

स्व. बिसाहूदास महंत स्मृति मेडिकल कॉलेज सह जिला चिकित्सालय में कान-नाक व गला रोग विभाग के हेड आॅफ डिपार्टमेंट डॉ हरबंश सिंह (एमएस, ईएनटी) का कहना है कि एकल परिवारों व जहां माता-पिता दोनों वर्किंग हैं, उनमें यह शिकायत अधिक आ रही है। इस तरह बेरोकटोक या सीमित रूप से बच्चों का कार्टून आदि में रम जाना, उनके लिए साइकोलॉजिकली मुश्किलें भी खड़ी कर सकता है। ऐसे में कुछ जरूरी उपाय अपनाने होंगे और गंभीरता से पालन कर उन्हें अपनी दिनचर्या में शामिल करना लाजमी होगा। इन समस्याओं से बच्चों को बचाने के लिए माता-पिता को भी कुछ पहल करनी होगी। उन्हें चाहिए कि जितना ज्यादा हो सके, बच्चों को समय दें। उनका काम जरूरी है पर जिनके लिए आप दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, उन्हीं बच्चों के अच्छे कल, सेहतमंद भविष्य के लिए अधिक से अधिक वक्त निकालना जरूरी है, ताकि वे सही शारीरिक व मानसिक विकास के साथ भविष्य के संघर्ष में पूरी ताकत से खड़े होने के काबिल बन सकें।


बच्चों के साथ खेलें, बिल्डिंग ब्लॉक्स बनाएं, ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं
डॉ हरबंश सिंह ने बताया कि जितना हो सके, उन्हें कार्टून से दूर रखें या एक समय निश्चित कर दें, जिसमें वे टीवी-कार्टून या फिल्म देख सकें। इसके अलावा अन्य गतिविधियों में उसके साथ पार्टिसिपेट करें, जैसे बिल्डिंग ब्लॉक्स बनाना, पजल कल करें, उनके साथ छोटे-छोटे खेलों में आनंद प्राप्त करें। इसके अलावा रंग भरना, छोटे खिलौनों के साथ खेलना जैसी जुगत से ट्रेंड में रहने से उनमें रचनात्मक कौशल का विकास होगा, वे सवाल करेंगे, नई-नई बातों को जानने-सीखने के साथ स्वयं कर के देखने और बोलने की कोशिश में अपना दिमाग लगाएंगे, जो उनके चहुंमुखी विकास में महत्वपूर्ण साबित होगा। इस तरह की अच्छी आदत फायदेमंद साबित होगी। आम तौर पर बच्चे एक्टिव ही होते हैं और वे हर क्षण में कुछ करते रहना चाहते हैं, अच्छा करेंगे तो अच्छा ही सीखेंगे और विकास सही दिशा में होगा।


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Aakash Pandey

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