छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई के मार्गदर्शन से गांवों में जाकर संरक्षण के लिए चला रहा जन-जागरुकता अभियान, विश्व पैंगोलिन दिवस पर विशेष
अनोखी बॉयोडायवर्सिटी वाले हमारे जंगल में भी दुर्लभ प्राणी पैंगोलिन का बसेरा है। छुपकर रहने वाला यह शर्मीला जीव अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) द्वारा प्रकाशित रेड लिस्ट में शामिल है, जिसे लुप्तप्राय श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। ऐसे खास जंतु के संरक्षण की दिशा में व्यक्तिगत प्रयास सुनिश्चित करते हुए एक विद्यार्थी गांवों में अभियान चला रहा है। वह स्वयं प्राणीशास्त्र की पढ़ाई कर रहा है और शिक्षा के बाद मिलने वाले वक्त का सदुपयोग इस तरह कर रहा, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं।
कोरबा(theValleygraph.com)। शहर के ढोढ़ीपारा बस्ती में रहने वाला लोकेश राज चौहान एमएससी जूलॉजी में द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी हैं, जो विज्ञान और वैज्ञानिक गतिविधियों को बढ़ावा देने कार्यरत छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की कोरबा इकाई में भी युवा कार्यकर्ता के तौर पर सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। वह पैंगोलिन के संरक्षण का उद्देश्य लेकर पिछले तीन साल से विभिन्न गांवों में जाकर जन-जागरूकता के लिए अभियान चला रहे हैं। पैंगोलिन संरक्षण पर फोकस अपने मिशन के लिए लोकेश अब तक लेमरू और पसरखेत परिक्षेत्र में 15 गांव कवर कर चुके हैं। जिले में अब तक की जानकारी के अनुसार 5 से 6 ऐसे गांव चिन्हांकित किए जा चुके हैं, जहां पैंगोलिन देखे जाने की सूचना सामने आई थी। इन गांव में ग्रामीणों ने पैंगोलिन देखने के प्रमाण भी दिए, जिसे लेकर पहले ही वन विभाग अलर्ट पर है। लोकेश अपनी कोशिशों से इस स्थिति तक पहुंच चुके हैं कि संभावित गांवों में जैसे ही पैंगोलिन देखे जाने की बात होती है, उनकी जागरुकता गतिविधियों की मदद से ग्रामीण उन्हें सूचित कर देते हैं। सूचना मिलते ही लोकेश उस लोकेशन पर पहुंच जाते हैं और इस कोशिश में जुट जाते हैं कि कोई किसी भी स्थिति में पैंगोलिन को नुकसान न पहुंचाए। कठिनाई की बात तो यह है कि पैंगोलिन विश्व स्तर पर सबसे अधिक तस्करी किए जाने वाले जंगली स्तनधारियों में से है। इसकी आबादी, जो कभी व्यापक स्तर पर थी, इनके प्राकृतिक आवास के क्षरण, त्वचा और मांस के लिए बड़े पैमाने पर अवैध शिकार के कारण तीव्र गति से घट रही है।
अधिकृत स्नेक रेस्क्यूअर, उद बिलाव प्रोजेक्ट में फील्ड असिस्टेंटलोकेशन न केवल पैंगोलिन के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं, वे उद बिलाव प्रोजेक्ट में विज्ञान सभा के फील्ड असिस्टेंट का योगदान दे रहे हैं। उन्हें वन विभाग की ओर से अधिकृत स्नेक रेस्क्यूअर की जिम्मेदारी भी प्रदान की गई है। लोकेश ने बताया कि पैंगोलिन रात्रिचर स्तनधारी हैं, जो बिलों को खोदते हैं और चींटियों-दीमकों को खाते हैं। पारिस्थितिक तंत्र प्रबंधन में ज्यादातर मिट्टी को नर्म कर नमी जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पैंगोलिन अपने अनोखे रूप के लिए जाने जाते हैं। उनके पास केरोटिन के बने शल्क होते हैं, जो उनके पूरे शरीर को ढंकते हैं। खतरे की स्थिति में, तो वे स्वयं की सुरक्षा के लिये गेंद की भांति रोल हो सकते हैं।
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