शोध का निष्कर्ष ये कि विदेश में बसने वाले एकल परिवार अपने बच्चों को अपनी सांस्कृतिक विरासत नहीं दे पा रहे हैं, शोध का केंद्र इंडो-अमेरिकन परिवार।
सुनहरे कॅरियर और उच्च आर्थिक आत्मनिर्भरता का सपना लेकर हर साल बड़ी संख्या में युवा विदेश का रुख करते हैं। पर वहां की कठिन नौकरी और एक-दूसरे के लिए वक्त की कमी के चलते एक बड़ी समस्या पैर पसार रही है। इन मुश्किलों के चलते विदेशों में रह रहे भारतीय परिवार चाहकर भी अपनी सांस्कृतिक विरासत नई पीढ़ी में स्थानांतरित कर पाने विफल हो रहे हैं। ऐसे में भारतीय मूल के होकर भी बच्चे दो देशों की अलग संस्कृतियों व भाषाओं के बीच उलझकर रह जाते हैं। पूरी तरह से न भारतीय रह पाते हैं और न ही उस देश के, जहां वे रह रहे हैं। अपने अनुभव बटोरकर लिखी गई झुम्पा लाहिड़ी के उपन्यास पर रिसर्च पूर्ण कर जिले की शोधार्थी डॉ दुर्गा चंद्राकर ने पीएचडी की उपाधि हासिल की है, जिसमें उन्होंने निष्कर्ष दिया है कि यह समस्या आने वाले वक्त में गंभीर रूप ले सकती है।
कोरबा(theValleygraph.com)। डॉ दुर्गा चंद्राकर को अंग्रेजी विषय में आईएसबीएम विश्वविद्यालय रायपुर (छत्तीसगढ़) से पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनका विषय झुम्पा लाहिड़ी के उपन्यास पर एक विषयगत अध्ययन था, जो उन्होंने अपनी शोध निर्देशक सुश्री डॉ. गरिमा दीवान के निर्देशन में पूर्ण किया। उन्होंने शासकीय ईवीपीजी महाविद्यालय में दो वर्ष समेत अनेक कॉलेजों में अतिथि व्याख्याता के पद पर कुल सात वर्ष तक अपनी सेवाएं प्रदान कर चुकी हैं। उनकी सफलता पर सहायक प्राध्यापक सुमित कुमार बैनर्जी का प्रत्यक्ष सहयोग व विशेष मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। शोध के परिणाम स्वरूप डॉक्टोरेट हासिल करने की डॉ दुर्गा चंद्राकर की इस उपलब्धि के पीछे उनके पति नरेश चंद्राकर का विशेष सहयोग रहा। श्रीमती चंद्राकर जिले के वरिष्ठ अधिवक्ता व नोटरी स्व. एनपी चंद्राकर व स्व श्रीमती उषा चंद्राकर की पुत्रवधु हैं। माता श्रीमती गंगा देवी चंद्रा व पिता एलएल चंद्रा, शिव कुमार चंद्राकर, श्रीमती उषा चंद्राकर, श्रीमती गायत्री देवी चंद्रा, जीवेंद्र चंद्रा, संजय चंद्रा (भैया) व उनकी बहनों के साथ ही तरुण, श्रृजन, आयुष, समृद्धि चंद्राकर, श्रीमती सीमा बैनर्जी, श्रीमती निधि सिंह, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष बृजेश तिवारी व परिजनों ने अपनी शुभकामनाएं प्रदान की है।
अपनी जगह बनाने के संघर्ष में संस्कृतियों-भाषाओं के बीच फंस रही पीढ़ी
डॉ दुर्गा चंद्राकर ने बताया कि झुम्पा लाहिड़ी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार और पुरस्कार विजेता लेखिका हैं। उनके काम ने दुनिया भर के पाठकों को मंत्रमुग्ध किया है। वर्ष 1967 में लंदन में जन्मे लाहिड़ी संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत में पले-बढ़े और उनका लेखन भारतीय प्रवासी के सदस्य के रूप में उनके अनुभवों को दर्शाता है। वह उन पात्रों के सशक्त और मार्मिक चित्रण के लिए जानी जाती हैं, जो संस्कृतियों और भाषाओं के बीच फंसे हुए हैं और दुनिया में अपनी जगह पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके काम को उसकी भावनात्मक गहराई, साहित्यिक कौशल और मानवीय अनुभव की जटिलताओं की सूक्ष्म समझ के लिए व्यापक रूप से सराहा गया है। कई पुस्तकों और अपने नाम कई प्रशंसाओं के साथ, लाहिड़ी को समकालीन साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।
A Thematic Study On The Fiction Of Jhumpa Lahiri” पर शोध
श्रीमती दुर्गा चंद्राकर को अंग्रेजी विषय में आईएसबीएम विश्वविद्यालय रायपुर (छत्तीसगढ़) से पीएचडी की उपाधि प्रदान से सम्मानित किया गया है। उनका विषय *“A Thematic Study On The Fiction Of Jhumpa Lahiri”* था, जो उन्होंने अपनी शोध निर्देशक सुश्री डॉ. गरिमा दीवान के कुशल निर्देशन में पूर्ण किया। उनके इस उपलब्धि के पीछे उनके पति नरेश चंद्राकर का विशेष सहयोग रहा। श्रीमती दुर्गा चंद्राकर, कोरबा जिले के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं नोटरी स्व. एनपी चंद्राकर एवं स्व. श्रीमती उषा चंद्राकर की पुत्रवधु हैं। स्व. एनपी चंद्राकर अपने जीवनकाल में सदैव ही शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े रहे एवं हमेशा से ही शिक्षा को विशेष महत्त्व देते थे, उनकी पुत्रवधु की यह सफलता उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। श्रीमती दुर्गा चंद्राकर जिले के शासकीय ईवीपीजी महाविद्यालय, कोरबा में अतिथि व्याख्याता के पद पर दो वर्षों एवं कमला नेहरू महाविद्यालय में पांच वर्षों की अपनी सेवाएं प्रदान कर चुकी हैं। उनकी इस विषय में सफलता पर सुमित कुमार बैनर्जी सहायक प्राध्यापक अंग्रेजी, कमला नेहरू महाविद्यालय, कोरबा (छत्तीसगढ़) का प्रत्यक्ष सहयोग एवं विशेष मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उनके इस सफलता पर उनकी माता श्रीमती गंगा देवी चंद्रा एवं पिता एलएल चंद्रा, शिव कुमार चंद्राकर, श्रीमती उषा चंद्राकर, श्रीमती गायत्री देवी चंद्रा, जीवेंद्र चंद्रा, संजय चंद्रा (भैया) एवं उनकी बहनों के साथ ही तरुण, श्रृजन, आयुष, समृद्धि चंद्राकर, श्रीमती सीमा बैनर्जी, श्रीमती निधि सिंह, श्रीमती अंजु कुमारी दिवाकर, मोहन कुमार दिवाकर, श्रीमती प्रीति जायसवाल, श्रीमती कुमकुम गुलहरे, बृजेश तिवारी, (विभागाध्यक्ष) अंग्रेजी विभाग, कमला नेहरू महाविद्यालय, कोरबा (छत्तीसगढ़), डॉ. अब्दुल सत्तार (विभागाध्यक्ष) शिक्षा संकाय, कमला नेहरू महाविद्यालय, कोरबा (छत्तीसगढ़) एवं परिजनों ने अपनी शुभकामनाएं प्रदान की है।
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