नवजात ने जब पहली बार पलकें उघारी, तो दिखाई पड़ा भीगा आकाश और दो कांधे की सवारी, कांवर पर लटकी थी जिंदगी और पीछे लोग निराश, मां से पूछा… आखिर ये कैसा विकास?


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शासन-प्रशासन चहुंमुखी विकास के तमाम दावे करते नहीं थकता। हर रोज सोशल मीडिया माध्यमों में सबका साथ सबका विकास के ध्येय वाक्य को चरितार्थ करती तस्वीरें भी प्रसारित की जा रही हैं। फिर इन तस्वीरों का क्या, जिनमें दूर गांव के लोग आज भी अपनी सेहत के लिए दो कांधों का एंबुलेंस खुद ही तैयार करने विवश हो रहे हैं। इस परेशानी को दूर करने की जवाबदारी भला क्यों नहीं उठाई जा रही है। आखिर उन्हें क्या चाहिए, सड़क, बिजली, पुल-पुलिया, पानी और आवागमन से उचित साधन। फिर बार बार इन बुनियादी आवश्यकताओं के लिए क्यों लिखना पड़ रहा है कि आजादी के 75 साल बाद भी लोग उन जरूरतों के लिए तरस रहे हैं, जो उनका अधिकार है?

Raigarh. यह ताजा तस्वीर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के कापू क्षेत्र से सामने आई है। क्षेत्र के पहुंचविहीन गांव पारेमेर घुटरू पारा से शनिवार 13 जुलाई को दोपहर करीब तीन बजे गर्भवती को प्रसव पीड़ा होने पर मदद भेजी गई थी। पर सहायता करने वाली टीम भी अधूरे संसाधनों के चलते कुछ पल ठहर जाने मजबूर हो गई। लक्षित गांव के रास्ते में एक नाला बह रहा है, जिसे वाहन पार नहीं कर सकता। सड़क के नाम पर ऊबड़ खाबड़ पथरीला रास्ता ही वहां मौजूद है। पहाड़ी से बहते बरसाती नाले पर पुल नहीं होने के कारण प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को पुलिस के जवान कांवर में उठाकर तीन किलोमीटर पैदल चले। इसके पहले कि वे अस्पताल तो दूर वाहन तक पहुंच पाते, रास्ते में प्रसव हो गया। इसके बाद जच्चा और बच्चा को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाया गया। छत्तीसगढ़ के पावरफुल मंत्रियों वाले रायगढ़ जिले की ऐसी दशा होने की उम्मीद कर पाना अपने आप में दुर्भाग्यजनक माना जा सकता है।

“प्रसूता की सहायता के लिए पहुंची टीम और उसमें शामिल पुलिस जवान समेत उन कर्मियों के जज्बे को सलाम है, जिनके हौसले के आगे आंधी, बारिश तो छोड़िए, उफनती नदी नाले और पहाड़ भी नतमस्तक हो जाते हैं। आपात जरूरत के वक्त पुकार पर दौड़ पड़ने वाले इन सेवाभावी कर्मियों के समर्पण के बूते अब ही लोगों की उम्मीद जिंदा है और वे जीने का हौसला लिए मुश्किलें लांघ जाते हैं।”


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