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रायपुर-दुर्ग। आइए आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में जाने, जिसकी छत और दीवारों पर ईंट-पत्थरों या कंक्रीट नहीं, बल्कि लाखों कलश जोड़कर श्रद्धा सबुरी का एक ऐसा संगम तैयार किया जा रहा है, जिसमें आस्था के साथ प्रकृति को सहेजने की जुगत शामिल है। लोगों की मदद से इस अनूठे संगम को सुसज्जित और संरक्षित करने का प्रकल्प पिछले 16 वर्षों से जारी है।
इस कलश मंदिर को देखकर चिंता हुई, इसे सहेजने की जरूरत है : डॉ अवधेश मिश्रा
नवरात्रि में उपयोग के बाद ज्योति कलश के इस्तेमाल से पिछले 16 साल से बन रहे इस मंदिर ने प्रदेशभर में अपनी अलग ही पहचान स्थापित की है, मगर समय (मौसम की मार) सहित कई कारणों से मंदिर को सीधे नुकसान हो रहा है, लोग फोटो खिंचवाने और रील बनाने के लिए जाने अंजाने में मंदिर को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ख्यातिलब्ध पत्रकार डॉ अवधेश मिश्रा ने फेसबुक पर एक पोस्ट साझा करते हुए लिखा है कि मंगलवार 16 जुलाई को जब वे भोपाल से रायपुर लौट रहे थे, तब वे इस मंदिर पर ठहरे। वहां की स्थिति देख कर दुख हुआ, जो मंदिर क्षेत्र का पहचान बन चुका है। उस पर संकट देखकर मन में चिंता भी हुई। यह मंदिर अपनी पहचान खो दे, मंदिर को कोई बड़ा नुकसान हो इससे पहले इसे सहेजने की जरूरत है।
दुर्ग जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर धमधा-खैरागढ़ जाने वाले रास्ते पर मौजूद है। यह मंदिर आम मंदिरों से बिल्कुल अलग है। इस मंदिर के लिए ईंट या पत्थरों का नहीं बल्कि ज्योति कलशों का इस्तेमाल किया जा रहा है, मंदिर को छोटे-बड़े दियों से बनाया जा रहा है। इस निर्माणाधीन मंदिर के पास ही हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गई है।
ताकि नवरात्रि के बाद नदी-तालाब में न बहाएं जाएं कलश
कलश के अपमान की वजह से यह निर्णय लिया गया। मंदिर के पुजारी का कहना है कि इस मंदिर को बनाने के पीछे एक खास उद्देश्य रखा गया है। गौर करने वाली बात यह है कि नवरात्रि और दीपावली के समय लोग 9 दिन मां दुर्गा की पूजा करने के साथ कलश में प्रज्वलित करते हैं। उसके बाद उन ज्योति कलश को नदी और तालाब में विसर्जित कर देते हैं। जिन कलशों की पूजा होती है, बाद में उनपर लोगों के पैर लगते हैं। इस तरह जिन पूजन सामग्रियों में खुद भगवान का वास होता है, उनका अपमान नहीं होना चाहिए। इसलिए बेकार पड़े कलश और दीयों को एकत्रित कर इन मंदिर का निर्माण शुरु (Jyoti Kalash Temple in Dhamdha of Durg) किया गया।
उल्लेखनीय होगा कि 16 साल पहले इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया था। अब तक एक लाख से अधिक कलश और दीप लग चुके हैं। यह मंदिर लगभग 50 फीट तक बन चुका है। लोग अपनी श्रद्धा से मंदिर निर्माण के लिए लगातार दान कर रहे हैं। लोगों की आस्था इस मंदिर के निर्माण और पूजा के प्रति लगातार बढ़ रही है। मंदिर निर्माण के लिए दंतेवाड़ा की मां दंतेश्वरी (Dantewada maa Danteshwari), डोंगरगढ़ की मां बमलेश्वरी और रतनपुर की मां महामाया मंदिर से मिट्टी के कलश लाए जा चुके हैं।
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