आधुनिक विकास परंपरा के चलते कई पंछी और पतंगें विलुप्त हुए तो बहुत से विलुप्ति के कगार पर हैं : डॉ HN टंडन


कमला नेहरू महाविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग में “हमारे आस पास की जैव विविधता के महत्व और संरक्षण में छात्रों की भूमिका” विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। इस व्याख्यान के मुख्य वक्ता संत गुरु घासीदास शासकीय पीजी कालेज कुरूद में जंतु विज्ञान के सहायक प्राध्यापक व हेड, छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा के सदस्य एवं जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ एचएन टंडन ने मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक विकास गति के चलते पारिस्थितिकी तंत्र में अहम कई कीटों की प्रजाति विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं। पौधे परिस्थितिकी तंत्र के उत्पादक हैं, जीव-जंतु उपभोक्ता, मृत्यु के बाद अपघटन सूक्ष्मजीवों का दायित्व होता है। आधुनिक विकास परंपरा के चलते बहुत से पक्षी-कीट विलुप्त हुए तो बहुत से विलुप्ति के कगार पर हैं।


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कोरबा। डॉ टंडन ने जैव विविधता के महत्व के संबंध में बताया कि प्रकृति का हर जीव चाहे वह शेर बाघ और हाथी जैसे बड़े जंतु हों, बड़े बड़े वृक्ष हो या सूक्ष्म जीव हो सभी की अपनी भूमिका होती है। हरे भरे पौधे परिस्थितिकी तंत्र के उत्पादक की भूमिका में होते हैं और सभी जीव-जंतु उपभोक्ता होते है जबकि इन सबकी मृत्यु के बाद मृत शरीर का अपघटन करने की जिम्मेदारी सूक्ष्मजीवों की होती है।

प्रकृति का हर जीव महत्वपूर्ण है। अतः इनका संरक्षण बेहद आवश्यक है। मानवीय गतिविधि और आधुनिक विकास परंपरा के कारण बहुत से पक्षी, कीट आदि विलुप्त हो गए और बहुत से जीव विलुप्ति के कगार पर हैं।

गौरैया भी उनमें से एक बेहद अहम् और कृषि सहायक पक्षी हैं जो बहुत से कीटों को खाकर प्राकृतिक तौर पर कीट नियंत्रण का कार्य करते हैं। जिसके घोंसले निर्माण की जगह की कमी के कारण आबादी में गिरावट हुई है। ऐसे बहुत से जीव जंतु हैं जो प्रकृति में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं किन्तु आधुनिक विकास गति के कारण इनकी आबादी लगातार घट रही है और विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं। महाविद्यालय के स्तर पर अध्ययन कर रहे छात्र इनके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव जैसे एम् एस सी स्तर में डिसरटेशन को शामिल करके इन छात्रों को सक्रीय शोधकार्य में संलग्न किया जा सकता है। निरंतर डाटा संग्रहण और अवलोकन से जीवो की वास्तविक आबादी का पता लगाकर संरक्षण के लिए कार्ययोजना बनाया जा सकता है।


इस अवसर पर मौजूद रहे कमला नेहरू महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर ने कहा कि यह व्याख्यान विद्यार्थियों के लिए काफी लाभकर होगा और उनसे सीख लेकर वे प्रकृति व पर्यावरण को संरक्षित करने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। व्याख्यान में एमएससी द्वितीय और चतुर्थ सेमेस्टर के छात्र छात्राओं ने भाग लिया। डॉ टंडन छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा में एग्जीक्यूटिव मेंबर है। संत गुरु घासीदास शासकीय पीजी कालेज कुरूद में जंतु विज्ञान के सहायक प्राध्यापक और हेड के रूप में पदस्थ हैं।


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