अब थोड़े से रक्त, 15 मिनट के वक्त में नई प्वाइंट Of केयर किट से सोलुबिलिटी टेस्ट के बाद वाली सटीक जांच


Video:- जिला अस्पताल में सिकल सेल एनीमिया में बेहतर चिकित्सा के लिए नई POC किट से किया जाता है परीक्षण। सोलुबिलिटी टेस्ट पॉजीटिव होने पर रोग की पुष्टि के लिए अब अत्याधुनिक किट का प्रयोग, कम समय, रक्त की कम मात्रा से सटीक परिणाम प्राप्त करने में कारगर।

सिकल सेल एनीमिया के निदान के लिए स्क्रीनिंग सबसे अहम प्रक्रिया है। पहचान और पुष्टि के अनुसार चिकित्सा की वह कार्यवाही शुरू होती है, जिसके जरिए रोगी का सही उपचार सुनिश्चित किया जा सके। जांच की इसी प्रक्रिया को तेज और सटीक बनाने अब स्वास्थ्य विभाग अत्याधुनिक पीओसी (प्वाइंट ऑफ केयर) किट का प्रयोग शुरू किया गया है। इस अत्याधुनिक पद्धति में सैंपल के लिए रक्त की अपेक्षाकृत अल्प मात्रा और जांच का समय कम लगता है। सैंपलिंग के सिर्फ 15 मिनट में ही सिकलिंग टेस्ट की रिपोर्ट प्राप्त कर यह पता लगाया जा सकता है कि सोलुबिलिटी टेस्ट में पॉजीटिव आया व्यक्ति सिकल सेल संवाहक (एएस) है अथवा सिकल सेल (एसएस) का रोगी है।

कोरबा(theValleygraph.com)। इस परीक्षण का उद्देश्य सिकलिन के निदान और प्रबंधन करने के तरीके को बदलना है, जिससे रोगी की बेहतरी के लिए तेजी से और सटीक परिणाम प्राप्त किए जा सकें। परंपरागत रूप से सिकल सेल एनीमिया का निदान करना एक श्रमसाध्य और समय लेने वाली प्रक्रिया रही है, जिसमें रक्त नमूना संग्रह, प्रयोगशाला में परिवहन और कुशल तकनीशियनों द्वारा बाद में विश्लेषण शामिल है। इस लंबी प्रक्रिया के चलते निदान और उपचार में देरी होती है। आधुनिक तकनीक के इस टेस्ट किट से केवल 15 से 20 मिनट में रक्त के छोटे सैंपल में असामान्य हीमोग्लोबिन की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है। यह पूर्व की प्रतिक्षण प्रणाली मुकाबले किफायती भी होता है। सामान्य, वाहक और सिकल सेल नमूनों के बीच तेजी से अंतर कर तेज और सटीक परीक्षण परिणाम प्राप्त करने में कारगर है। जिला ब्लड बैंक प्रभारी और पैथोलॉजिस्ट डॉ जीएस जात्रा ने बताया कि पीओसी किट सिकल सेल एनीमिया के सार्वजनिक स्वास्थ्य निहितार्थ काफी महत्वपूर्ण हैं। जिन लोगों को सिकल सेल एनीमिया है, उन्हें संभावित चिकित्सा जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। समय पर बीमारी के प्रभाव का पता लगाते हुए वांछित उपचार प्रदान करने में महत्वपूर्ण मदद करता है। सिकल सेल एनीमिया एक वंशानुगत बीमारी है, अर्थात यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन्हें दोषपूर्ण जीन विरासत में मिलते हैं। सिकल सेल रोग को सिकल सेल एनीमिया के रूप में भी जाना जाता है। यह एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जो लाल रक्त कोशिकाओं की संरचना और कार्य को प्रभावित करता है।

जिला अस्पताल, सीएचसी में उपलब्ध है सुविधा, वह भी बिलकुल नि:शुल्क

डॉ जात्रा ने बताया कि पीओसी टेस्ट पर सिकलिंग परीक्षण की सुविधा जिला मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में भी उपलब्ध है। जरूरत महसूस होने पर कोई भी इन अस्पतालों में आकर जांच करा सकता है, जो बिलकुल नि:शुल्क उपलब्ध है। इन केंद्रों में आकर सिकल सेल एनीमिया के मरीजों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सिकलिन में शरीर में पाई जाने वाली लाल रक्त कणिकाएं गोलाकार होती हैं, पर बाद में वह हंसिए की तरह बन जाती है। वह धमनियों में अवरोध उत्पन्न करती हैं। इससे शरीर में हिमोग्लोबिन व खून की कमी होने लगती है। इसके चलते हाथ-पैरों में दर्द होना, कमर के जोड़ों में दर्द होना, अस्थिरोग, बार-बार पीलिया होना, लीवर पर सूजन आना, मूत्राशय में रुकावट या दर्द होना, पित्ताशय में पथरी होना।

सतत स्क्रीनिंग के साथ बढ़ रही है रोगी और समवाहकों की संख्या

सिकलिंग मूलतः एक अनुवांशिक बीमारी है, लेकिन खानपान, आहार में अनियमितता, नशा व अज्ञात कारणों से जींस में अचानक परिवर्तन से भी यह बीमारी उत्पन्न हो जाती है और ऑक्सीजन की कमी के कारण लाल रक्त कणिकाएं हसिए की शक्ल में बदल जातीं हैं। जिले में सिकल सेल एनीमिया के रोगियों तथा वाहकों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिसे रोकने के लिए वाहकों की पहचान जरूरी है। जिसके लिए लगातार जांच अभियान चलाया जा रहा। सिकल सेल एनीमिया पर नियंत्रण पाने वाहकों की पहचान सबसे अहम है। सामाजिक अजागरूकता के चलते अब भी पीड़ित सामने आने से कतरा रहे।सिकलिंग से जुड़ी जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने से उनमें जागरूकता का संचार होगा और इस बीमारी को समाज से दूर किया जा सकेगा।

अगर यह स्थिति हो तो सिकलिंग कुंडली का मिलान जरूरी है

राज्य सहित जिले की दस फीसदी आबादी इस बीमारी से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित है। सिकल सेल दो प्रकार के होते हैं, पहला सिकल सेल वाहक होता है जो ज्यादा खतरनाक होता है। इनमें सिकल का एक जींस होता है। सामान्य जीवन जीने वाले वाहकों की सिकलिंग की रोकथाम में खास भूमिका होती है। वाहक यदि अनजाने में दूसरे सिकल रोगी या वाहक से विवाह करते हैं, तो सिकल पीड़ित संतान पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। दूसरा प्रकार सिकल सेल रोगी होता है। जब पति-पत्नी दोनों सिकलिंग पीड़ित होते हैं, तो पालकों के असामान्य जींस मिलने से संतान सिकल पीड़ित पैदा होता है। प्रत्येक पांच वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों, अविवाहितों को सिकलिंग की जांच करा लेनी चाहिए। साथ ही सिकलिंग कुंडली मिलान कर ही शादी करनी चाहिए।

जिला ब्लड बैंक प्रभारी डॉ जीएस जात्रा ने कहा…
सिकलिंग में अभी एक नया टेस्ट किट आया है। रक्त सोलुबिलिटी टेस्ट पहले हर व्यक्ति को करना पड़ता है। अगर सोलुबिलिटी टेस्ट पॉजीटिव आता है, तभी हम पीओसी टेस्ट करते हैं, कि सिकल सेल संवाहक (एएस) या सिकल सेल एनीमिया रोगी (एसएस) है। पूर्व की पद्धति के मुकाबले पीयूसी टेस्ट किट अपेक्षाकृत सरल और तेज है, जिसमें सिर्फ 15 मिनट में रिपोर्ट प्राप्त हो जाती है।


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