राष्ट्रीय दंत चिकित्सक दिवस विशेष:- दांतों की समस्या लेकर डॉक्टर के पास पहुंच रहे मरीजों में बड़े पैमाने पर सामने आ रही ओरल कैंसर की शिकायतें, हमारी मुस्कान छीन रहे पान-गुटखा और धुम्रपान की सेहत विरोधी आदतें।
कोरबा(theValleygraph.com)। मुखशुद्धि के नाम पर नशे से युक्त पान, गुटका-पाउच और इस प्रकार की सेहतविरोधी आदतें बड़ों में ओरल कैंसर जैसे भयावह रोग का कारण बन रहे हैं। दूसरी ओर घर पर पके शुद्ध और सेहत से भरपूर भोजन की बजाय बाहर की दावत, पिज्जा-बर्गर का जायका बच्चों को मुख संबंधी समस्याओं की चपेट में ले रहा है। आलम यह है कि अनियमित लाइफ स्टाइल और तंबाकू-धुम्रपान की लत के चलते बीते एक दशक में मुख, गले और जीभ के कैंसर के मामले करीब 200 गुना बढ़ गए हैं। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि जिले में वर्षों से लोगों की सेहतभरी मुस्कान के लिए चिकित्सकीय सेवा प्रदान कर रहे दंतरोग विशेषज्ञों के अनुभव हैं, जिन्होंने इसे बड़ी चिंता करार देते हुए लोगों को अपनी आदत व खान-पान में सुधार लाने की गुजारिश की है। उनका यह भी कहना है कि एक से डेढ़ दशक पहले तक ज्यादातर परिवार घर की रसोई में तैयार लंच-डिनर साथ बैठकर किया करते, जो न केवल खुशहाल परिवार की, बल्कि सेहतमंद शरीर के लिए संजीवनी होता था। एक बार फिर बाहर खाने की आदत छोड़कर घर का शुद्ध भोजन अपनाएं, तो मजबूत दांतों के साथ खो रही अपनी खूबसूरत मुस्कान वापिस पाई जा सकती है।
एक दशक पूर्व साल में आते थे 4-5 केस, अब प्रतिमाह ओरल कैंसर के 3-4 मरीज : डॉ संजय अग्रवाल
बीते 27 वर्षों से जिले में दंत चिकित्सा के क्षेत्र में सेवाएं प्रदान कर रहे दंतरोग विशेषज्ञ डॉ संजय अग्रवाल ने बताया कि पान-गुटखा, तंबाकू, बीड़ी-सिगरेट जैसी सेहतविरोधी आदतें बड़ों, तो घर की दाल-चावल, रोटी-सब्जी से दूर होकर पिज्जा-बर्गर व चिप्स जैसी चीजों की ओर आकर्षण बच्चों की सेहतभरी मुस्कान छीन रही हैं। अनुचित खान-पान, अनियमित दिनचर्या, खाद्य सामग्रियों में पेस्टिसाइट्स का असर व स्ट्रेस वाली लाइफस्टाइल के चलते आज के समय में जो सबसे घातक प्रभाव के रूप में सामने आ रही है, वह है मुंह, गले और जीभ का कैंसर। इसी तरह बच्चों में कैविटी, दांतों की सड़न, समय से दांत गिरते नहीं हैं, तो नए दांत आने में देरी व बनावट बिगड़ जाने की परेशानियां आम हो चली हैं। यही वजह है जो दस साल पहले तक जहां मेरी क्लीनिक में ओरल के कैंसर के तीन-चार या पांच केस सालभर में सामने आते थे, अब की स्थिति ऐसी है कि हर माह तीन-चार केस दिख जाते हैं। दस साल में इस तरह के मामले 200 प्रतिशत बढ़ गए हैं, जो बड़ी चिंता का विषय है। डॉ अग्रवाल ने कहा कि घर का शुद्ध भोजन दांतों के रास्ते पूरे शरीर को मजबूती और सेहतमंद जिंदगी के जिए सर्वश्रेष्ठ है, इसे अपनाएं और भयावह रोगों से दूर रहें।
मसूड़ों के सूजन को हल्के में न लें, भारी पड़ सकती है लापरवाही: डॉ मृत्युंजय सिंह
ओरल एंड डेंटल सर्जन डॉ मृत्युंजय सिंह ने बताया कि सभी एज ग्रुप में जिंजिवाइटिस यानी मसूड़े की सूजन की कॉमन समस्या हर आयु में सबसे ज्यादा मिल रही है। अगर वक्त रहते सही कदम न उठाया गया, तो आगे जाकर यह पायरिया बन जाता है और दांत बिना सड़े ही अपनी जगह पर हिलकर गिरने लगते हैं। इसके लक्षण कम आयु में ही देखने को मिल सकते हैं। 18-19 वर्ष की आयु में यह शुरू हो जाता है और बहुत जल्दी फैलकर सभी दांतों को खराब कर देता है। इसकी रोकथाम के लिए नियमित दिनचर्या में मुख व दांतों की हाइजीन का ध्यान रखें, ताकि प्लार्क जमने न पाए। दूसरी जरूरी बात यह कि डेली ब्रशिंग में प्लार्क की समस्या से पूरी तरह राहत नहीं हो पाती। इसलिए साल में एक बार अल्ट्रासोनिक स्केलिंग जरूर कराएं, ताकि पायरिया की संभावनाओं पर पूरी तरह अंकुश लगाए जा सके, जो आज हर दूसरे मरीज में पाया जाता है।
पीएम जनमन में भी ओरल स्वास्थ्य को प्रोत्साहन
जिला स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी सभी स्वास्थ्य केंद्रों में मुख संबंधी रोगों के साथ ओरल कैंसर की जांच लगातार की जा रही है। प्रधानमंत्री जनमन योजना के तहत ओरल स्वास्थ्य को प्रोत्साहित किया जा रहा है। स्व. बिसाहूदास महंत स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय सह जिला अस्पताल में ओरल कैंसर यूनिट होने से भी काफी मदद मिल रही है, जिससे ओरल कैंसर की जांच कर उनके उपचार की दिशा में व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। कीमो थेरेपी यूनिट की सुविधा प्रदान की जा रही है। ओरल फ्रैक्चर या जबड़ों के फ्रैक्चर की ट्रीटमेंट सुविधा भी उपलब्ध है।
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जिला स्वास्थ्य विभाग कर रहा ये पहल
01. मुख संबंधी बीमारियों के साथ कैंसर संबंधी जांच सभी आयुष्मान आरोग्य मंदिर में किया जा रहा है।
02. साथ ही प्राथमिक उपचार व जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
03. विगत वर्षों में मुख संबंधी रोगों के बारे में लोगों में जागरूकता आई है और इससे गंभीर बीमारी जैसे मुख का कम खुलना, कैंसर, जबड़े का इलाज संबंधी कार्य CHC एवम मेडिकल कालेज में किया जा रहा है।
04. साथ ही तंबाखू से होने वाले गंभीर बीमारियों के प्रति जागरूकता के लिए मेडिकल कालेज में तंबाकू निषेध केंद्र (टीसीसी) संचालित किया जा रहा है।