दिवाली पर दुर्लभ शिववास योग, आज कैलाश पर भी मां गौरी संग दीपावली मनाएंगे महादेव, शाम 5.36 बजे से लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त


पुरातन हिंदू परंपरा और सनातन धर्म में दीपावली वर्ष का सबसे प्रमुख त्यौहार माना जाता है। इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी और रिद्धि सिद्धि के स्वामी भगवान गणपति की पूजा का विधान है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल दीपावली आज, यानी 31 अक्टूबर दिन गुरुवार को मनाई जा रही है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन (Diwali 2024) लक्ष्मी-गणेश की पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। साथ ही सुख और समृद्धि आती है। इस बार दिवाली के दिन प्रीति योग और दुर्लभ शिववास योग के साथ चित्रा नक्षत्र का शुभ संयोग। ऐसी मान्यता है कि शिववास योग में आज कैलाश पर महादेव भी मां गौरी संग निवास करेंगे। आज लक्ष्मी पूजन के लिए शाम 5.36 बजे से रात्रि 8.51 बजे तक शुभ मुहूर्त है।


पंडित रमेश चंद्र दुबे के अनुसार दीवाली के शुभ अवसर पर दुर्लभ शिववास योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी। इस समय में भगवान शिव कैलाश पर मां गौरी के साथ रहेंगे। इस समय में भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं। दीवाली पर चित्रा नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है।


ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 31 अक्टूबर को दीवाली है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि समुद्र मंथन के समय धन की देवी मां लक्ष्मी अवतरित हुई थीं। इससे पूर्व ऋषि दुर्वासा के श्राप के चलते स्वर्ग लक्ष्मी विहीन हो गया था। धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुखों से मुक्ति मिलती है। इस शुभ अवसर पर साधक भक्ति भाव से लक्ष्मी-गणेश जी की उपासना करते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो दीवाली (Diwali 2024) पर दुर्लभ शिववास योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में लक्ष्मी जी की आराधना करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी।


शुभ मुहूर्त

वैदिक चांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट पर शुरू होगी और 01 नवंबर को संध्याकाल 06 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 31 अक्टूबर को दीवाली मनाई जाएगी। 31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ समय संध्याकाल 05 बजकर 36 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 51 मिनट तक है। इस समय में धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं।


शुभ योग-संयोग

प्रीति योग

कार्तिक अमावस्या यानी दीवाली पर प्रीति योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण प्रातः काल 09 बजकर 52 मिनट से हो रहा है। वहीं, समापन 1 नवंबर को 10 बजकर 41 मिनट पर होगा। ज्योतिष प्रीति योग को शुभ मानते हैं। इस योग में मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होंगे।

शिववास योग

दीवाली के शुभ अवसर पर दुर्लभ शिववास योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी। इस समय में भगवान शिव कैलाश पर मां गौरी के साथ रहेंगे। इस समय में भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं। दीवाली पर चित्रा नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है।


पूजन विधि, फूल एवं भोग

सुबह उठकर स्नान करें। लाल रंग के वस्त्र धारण करें। अपने पूजा कक्ष को साफ करें। इसके बाद कलश को सजाएं उसमें जल, गंगाजल, सुपारी, आदि डालकर उसकी स्थापना करें। हाथ में फूल और अक्षत लेकर लक्ष्मी-गणेश का ध्यान करें। उनका दूध, दही, शहद, तुलसी और गंगाजल आदि से स्नान कराएं। स्नान के बाद उन्हें वापस से चौकी पर विराजित कर दें। फिर लक्ष्मी-गणेश को कुमकुम, रोली और चंदन से तिलक करें। कमल व पीले फूल अर्पित करें। इसके बाद उन्हें खीले-खिलौने, बताशे, मिठाइयां फल, पैसे और सोने के आभूषण आदि अर्पित करें। भगवान के समक्ष 11 या 21 घी के दीपक जलाएं।


पंचांग

सूर्योदय – सुबह 06 बजकर 28 मिनट पर

सूर्यास्त – शाम 05 बजकर 46 मिनट पर

चंद्रोदय- सुबह 06 बजकर 09 मिनट पर

चंद्रास्त- दोपहर 04 बजकर 49 मिनट पर

ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 49 मिनट से 05 बजकर 41 मिनट तक

विजय मुहूर्त – दोपहर 01 बजकर 55 मिनट से 02 बजकर 39 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त – शाम 05 बजकर 36 मिनट से 06 बजकर 02 मिनट तक


मां लक्ष्मी को कमल, गुलाब और बप्पा को पीले व गुड़हल के फूल अर्पित करें। खीर, लड्डू, बर्फी, मोदक, खीले-खिलौने, बताशे और ऋतु फल आदि अर्पित करें।


इन मंत्रों के साथ विधि पूर्ण करें 

1. ॐ गं गणपतये नमो नमः

2. ॐ महालक्ष्म्यै नमो नमः

3. ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा

4. ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी, जातवेदो म आ वह।

पद्मानने पद्मिनी पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधस्त्व।।


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