रंगों के त्योहार होली की झलक पेश कर रहे शहर के घरों में लगे कांग्रेस-भाजपा के झंडों की कतार।
किसे अपना नेता चुनना है, यह तो अंदर की बात है। पर होली है तो रंगों की बात भी करनी ही होगी। गौर करें कि आजाद हिंदुस्तान की बुनियाद बना कांग्रेस हो या आज के भारत का आगाज करने वाली भाजपा, दोनों पार्टियों के झंडे बड़े खूबसूरत रंगों से लबरेज हैं। घुरेड़ी पर रंग-गुलाल से पहले मौजूदा चुनावी लहर में गली-मोहल्लों, गांव के चौबारों, सड़क और गलियारों से लेकर कॉलोनी और बस्तियों में लहराते ये झंडे होली के मौसम में राजनीतिक रंग भरकर एक नई छटा पेश कर रहे हैं। एक नजरिए से देखें तो पड़ोस में रहने वालों भले ही अपनी-अपनी पार्टी अलग रखी हो और उनके छत पर लहराते झंडे भी अलग-अलग हों, पर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की थ्योरी से इतर अपने रंगों के बहाने उन झंडों ने तो अपनी होली खेल ली है, …क्योंकि भइया रंग तो राजनीति नहीं जानते।
कोरबा(thevalleygraph.com)। जब कभी चुनावी सीजन आता है, तो माहौल कैसा होता है, इसे बयां करना काफी उत्साहजनक अनुभूति देता है। आम हो या खास शख्सीयतें, लगभग सभी के लिए यह अपने आप में काफी रोचक और मस्ती से भरा है। भले ही हाथ उनके हाथों, गाड़ियों और छत की मुंडेर पर झंडे अलग-अलग हों, पर हर कोई खुद को इस चुनावी रंग में रंगने को उत्साहित देखा जा सकता है। महज तीन माह के अंतराल में एक बार फिर वही महौल हर किसी के सिर चढ़ चुका है। कइयों के लिए तीन माह की नौकरी की जुगत भी हो गई है तो पांच साल के कामकाज का ओहदा हासिल करने प्रमुख प्रतिस्पर्धी जी-जान से मैदान में डटे हुए हैं। कुर्सी हो या न हो, वैसे तो उनकी राजनीतिक क्लास ही कुछ ऐसी है कि दौड़-भाग बारह महीने, सातों दिन लगी रहती है पर यह वक्त इम्तिहान का है। हर पांच साल में लिए जाने वाले इस इम्तिहान में परीक्षार्थी की भूमिका प्रत्याशी निभा रहे हैं और परीक्षण का मेरिट अंक देने का जिम्मा जनता का है। ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि झंडों की तरह होली के रंग में रंगकर केवल प्रतिस्पर्धा पेश हो और इम्तिहान का दौर गुजर जाने के बाद सबसे अगली कतार और सबसे पीछे बैठे बैक बेंचर एक बार फिर से धरातल पर साथ नजर आएं।
उधर चाय-समोसे के ठेलों पर रोज बैठ रही संसद
चुनावी सीजन में अखबारों से लेकर सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में वायरल सुर्खियां हर किसी को आकर्षित करते हैं। रोज नए राजनीतिक चुटकुले, बयांबाजी की चर्चाएं भी खूब होती हैं। इन दिनों यहां भी एक ओर कोरबा लोकसभा चुनाव को लेकर सियासत सरगर्म है तो उधर गर्मी में गर्मागरम चाय की चुस्कियों के साथ ठेलों पर हर दो घंटे में महफिलों के बहाने मानों संसद सज जाती है। लोग अपनी-अपनी पार्टी का झंडा लेकर अपने दोस्तों को ही प्रतिपक्ष में खड़ा कर देते हैं। बयानों की प्रतिस्पर्धा में उतरे पॉलिटीशियन के शब्दों पर जुबानी रार छिड़ जाती है। इस बहस में शामिल होने वाले तो जोश में रहते ही हैं, उन्हें चुपचाप सुनने वाले भी आनंद उठाते देखे जाते हैं।