देखिए वीडियो, कमला नेहरू महाविद्यालय कोरबा में अध्ययनरत बीएड अंतिम के युवा विद्यार्थी स्कूलों में शिक्षण के साथ बच्चों के लिए विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से एक कुशल शिक्षक बनने के गुर सीख रहे हैं।
कोरबा(theValleygraph.com)। एक शिक्षक को कुशल शिक्षक कहलाने के लिए योग्यता और पात्रता के साथ विचारों में अपने काम को लेकर कर्तव्य और दायित्वबोध का होना भी जरूरी है। यह तभी हो सकता है, जब वह विद्यार्थियों के मनोविज्ञान की समझना सीख ले। टीचिंग में करियर का लक्ष्य लेकर चल रहे युवाओं को शिक्षा में स्नातक की पढ़ाई के दौरान भी बच्चों को समझने की कला प्रमुखता से सिखाई जाती है। कमला नेहरू महाविद्यालय के बीएड स्टूडेंट इन दिनों बच्चों को स्कूलों में पढ़ाने के साथ साथ उन गतिविधियों का भी संचालन कर रहे हैं, जिनसे वे न केवल बच्चों को समझ सकें, बल्कि खेल खेल में बच्चों का विश्वास जीतने की भी कला सीख सकें। और तभी आगे चलकर भविष्य में उनसे पढ़ने वाला हर विद्यार्थी इन भावी शिक्षकों की वह हर बात सुनेगा, मानेगा और उस राह पर चलेगा, जो उसे कल के भारत का एक पूर्ण शिक्षित, पूर्ण जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनने के लक्ष्य तक ले जाएगा।
इस विषय पर एल कमला नेहरू महाविद्यालय में बीएड (शिक्षा में स्नातक) अंतिम वर्ष की स्टूडेंट भारती जायसवाल ने बताया कि शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला पुरानी बस्ती कोरबा में उनके द्वारा शिक्षण के दौरान पढ़ाई के साथ समय-समय पर बच्चों के लिए अन्य गतिविधियां भी आयोजित की जाती हैं। इसी कड़ी में बच्चों को ग्रामीण खेल कितने भाई कितने का अभ्यास कराया गया। बच्चों के लिए यह खेल नया था। बहुत से बच्चों ने इस खेल में भाग लिया और एक नया खेल खेलना सीखा। बीएड अंतिम वर्ष की स्टूडेंट भारती जायसवाल के साथ-साथ कमला नेहरू महाविद्यालय कोरबा में अध्ययनरत शिक्षा संकाय के विद्यार्थी सत्येन्द्र पाल, दिलदेव सिंह कंवर, योगेश कुमार, शशिकला राठिया, सोहिता राठिया, संगीता कंवर, मुनव्वरा शिनाज, नीलिमा कंवर भी शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त कर शिक्षकीय करियर में सधे हुए कदमों से आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने कड़ी मेहनत कर रहे हैं। कमला नेहरू महाविद्यालय कोरबा की पूरी टीम शिक्षा में समाज को नए पाएदान पर ले जाने अहम भूमिका निभाने वाले कुशल शिक्षकों ने निर्माण में एक अनुभवी मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहा है।
तब एक शिक्षक की सख्ती भी प्रेरित करती है:- भारती
इस विषय पर अपने अनुभव साझा करते हुए कमला नेहरू महाविद्यालय में बीएड (शिक्षा में स्नातक) अंतिम वर्ष की स्टूडेंट भारती जायसवाल ने बताया कि इस कला को सीखना सबसे ज्यादा आवश्यक है। यह सीखने की सबसे आसान विधि यही है कि आपको बच्चों के साथ, उनके बीच जाकर खुद भी बच्चा बन जाना होगा। हम भी यही करते हैं और क्लास के बाद खेल के मैदान में आते ही उनमें शामिल हो जाते हैं। जब आप बच्चों का विश्वास जीत लेते हैं तो एक अनुशासित शिक्षक की भूमिका में आपकी सख्ती भी विद्यार्थी को अच्छा करने, सही करने, सही राह चुनने के लिए प्रेरित करती है। मैं यह सीख रही हूं और मुझे विश्वास है कि मैं यह सीख लूंगी।