उस दौर में साइकिल से अपराधियों का पीछा करती थी पुलिस, गांव में चुनिंदा स्कूल थे पर बिजली नहीं, आज देश में Pawer City की पहचान, अब स्वास्थ्य-शिक्षा और खेल हब बनने की दहलीज पर खड़ा है हमारा कोरबा


विकास की चेकलिस्ट में जुड़ रहे बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं के नए पैमाने, 40 बरस में चुनौतियों को तेज और सफल कदमों से किया पार, कस्बा से ऊर्जाधानी बना, अब शिक्षा-स्वास्थ्य और खेल हब की पहचान बनाने की ओर अग्रसर है Korba.


 



कोरबा(theValleygraph.com)।
नगर विकास के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, बुनियादी सुविधाएं, नागरिक सेवाएं और फिर लॉ एंड आर्डर, ये सब किसी चेकलिस्ट की तरह कुछ ऐसे महत्वपूर्ण विषय हैं, जिनके आधार पर किसी कस्बे को शहर या जिले में तब्दील होने की राह सुनिश्चित होती है। बीते चालीस साल, विकास की चेकलिस्ट की उन्हीं चुनौतियों को तेज और सफल कदमों से पार करते हुए हमारा कोरबा पहले पावर हब, फिर एजुकेशन हब, हेल्थ और अब एक खेल हब का कीर्तिमान स्थापित करने की दहलीज पर आ चुका है। गांव, कस्बा या तहसील से ऊर्जानगरी की पहचान कायम होने तक की इस यात्रा में कोयला और बिजली की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रही है। तब के दौर में महज 520 मेगावाट उत्पादन क्षमता थी और इन 42 सालों में 5 हजार मेगावाट से अधिक की वृद्धि दर्ज कर कोरबा अब प्रदेश ही नहीं, देश में अग्रणी ऊर्जा महानगर की ख्याति हासिल करने के लक्ष्य से बस कुछ कदम दूर आकर खड़ा है। कोरबा की धरती से छत्तीसगढ़ का 85 फीसदी से अधिक कोयला निकल रहा है। 40 बरस के सफर में 12 से आज 157 मिलियन टन कोयला उत्पादन के साथ देश-प्रदेश के कोने-कोने को ऊर्जा पहुंचा रहा है।


एक छात्र, युवा और एक लीडर, इस शहर के साथ-साथ मैंने देखा हर तरह का संघर्ष: जयसिंह अग्रवाल

छात्र जीवन से ही सेवा और एक लीडर की अनेक लड़ाइयों से गुजरकर आज प्रदेश सरकार में राजस्व एवम आपदा प्रबंधन मंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे जयसिंह अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने एक विद्यार्थी, एक युवा और एक लीडर के तौर पर इस शहर का संघर्ष देखा भी, खुद भी महसूस किया है। पहले कोरबा एक गांव हुआ करता था, फिर एक कस्बा, नगर और जिला बनने के साथ ही ऊर्जानगरी की पहचान बनाई। मैंने स्वयं कोरबा के विकास की धारा में साथ-साथ तैरना सीखा है और तब जाकर कोरबा की पहचान में मेरी अपनी पहचान बन सकी। मेरा मानना है कि इस शहर में रहने वाला हर नागरिक आज यही महसूस कर रहा होगा, क्योंकि कोरबा न केवल खुद बढ़ता गया, अपनी छत्रछाया में रहने वाले हर आदमी का हाथ पकड़कर अपने साथ विकास की ओर बढ़ाता गया। मुश्किलों और कठिनाइयों के उस दौर को जब भी याद करेंगे, बस ढेर सारी प्रेरणा ही मिलेगी, जो कोरबा की यह भूमि अपने हर बाशिंदे को कदम दर कदम आगे बढ़ते रहने का हौसला देती है। कोरबा की धरती और कोरबा की जनता को मेरा नमन, जिन्होंने इसे देश की अग्रणी पावर सिटी के रूप में ख्याति दर्ज कराने हर कदम पर साथ निभाया। मेरा यही संकल्प है कि जीवन में अपनी इस कर्मभूमि की सेवा की राह पर चलते हुए इसी तरह कोशिशें करता रहूं।


तब नगर विकास थी प्राथमिकता, अब नागरिक सेवाएं: अशोक शर्मा
कोरबा के विकास का बड़ा दौर देख चुके नगर निगम के पूर्व आयुक्त अशोक शर्मा ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि नगर निगम का गठन साडा के विघटन के पश्चात 9 जून 1998 को हुआ था। वर्ष 2000 में प्रथम निर्वाचित परिषद आई। नगर विकास ही साडा विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के समय सबसे बड़ी प्राथमिकता थी। निगम गठन पश्चात निर्वाचित पार्षदों व महापौर की प्राथमिकता नगरपालिक सेवाएं जैसे सड़क, पानी, बिजली व स्वच्छता हो गई। साडा के समय बजट का अधिकांश भाग कास्ट रिकवरी प्रोजेक्ट, आवासीय और व्यावसायिक योजनाओं में खर्च किया जाता था, जिससे लागत से अधिक आय होती थी। अत: वित्तीय स्थिति ठीक रहती थी। निर्वाचित परिषद में प्रतिनिधि की प्राथमिकता नगरीय सेवाएं बन गई, जिससे वित्तीय साधन सीमित होने से विकास कार्यों पर वित्तीय संसाधनों की कमी होती है। कोरबा निगम क्षेत्रफल के अनुसार प्रदेश का सबसे बड़ा निगम है। औद्योगिक संस्थानों से संम्पत्ति कर व निर्यात कर की आय निगम के वित्तीय साधनों को सशक्त करती है। निगम क्षेत्र के अनुसार वर्तमान में स्टाफ सेटअप की कमी से सेवाओं पर असर होता है। केंद्र व राज्य के वित्तीय सपोर्ट से योजनाएं बनाकर विकास की अपार संभावनाएं हैं, जिस ओर कोरबा बढ़ रहा है।


 


सन १९81 से पकड़ी ट्रैक और मिनीभारत तक का सफर : किशोर शर्मा
संघर्षशील कस्बे के रूप में एक के बाद एक ख्यातियां अर्जित करने की राह पर बढ़ रहे कोरबा में करीब 42 साल पहले बुद्धिजीवी, वरिष्ठ पत्रकार और कमला नेहरू महाविद्यालय समिति के अध्यक्ष किशोर शर्मा ने आकर अपने जीवन का नया संघर्ष शुरू किया था। एक पहचान बनाने की ओर अग्रसर इस छोटे से शहर के साथ-साथ वे स्वयं भी यही उद्देश्य लेकर संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने बताया कि तब यह शहर ऐसा नहीं था। सड़क-बिजली समेत बुनियादी जरूरतें पूरी करने वाले संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर धीरे-धीरे आकार ले रहे थे। इस कार्य में मददगार रही पत्रकारिता भी अपने आप में चुनौती थी, जिसमें आम नागरिकों का भी स्वस्फूर्त सहयोग हुआ करता था। पर आज के मुकाबले तब का कोरबा सौहार्द्र और भाइचारे से लबरेज था। श्री शर्मा ने कहा कि एक सड़क, एक रेलवे ट्रैक के रास्ते कोरबा ने मिनीभारत तक का स्वर्णिम सफर तय किया है, जिसमें वर्ष 1981 की भूमिका सबसे अहम है, जब एनटीपीएस, एचटीपीएस और कुसमुंडा ओपन कास्ट ने कोरबा की तकदीर बदलने एक बड़ी क्रांति की भूमिका निभाई। आज यह शहर ऊर्जानगरी के रूप में प्रदेश व देश की ऊर्जा बनकर स्थापित है।


तब साइकिल से 124 गांव का लॉ एंड आॅर्डर देखती थी पुलिस : भेसदास महंत
मूल रूप से कोरबा के ही रहने वाले रिटायर्ड पुलिस अधिकारी भेसदास महंत ने बताया कि तब का दौर मुश्किलों और चुनौतियों से भरपूर रहा। पर सुविधा की कमी वाली उन कठिनाइयों के उस दौर ने ही आज के कोरबा को इतना सक्षम बनाया है, जहां प्रदेश के सबसे सुरक्षित और शांति से लबरेज हवा में यहां का हर नागरिक सांस लेता है। श्री महंत ने सितंबर 1995 में बतौर पुलिस आरक्षक महकमा ज्वाइन किया और कोतवाली क्षेत्र में ड्यूटी शुरू की। उस दौर में किसी घटना-दुर्घटना या अपराध की तहकीकात के लिए उन्हें साइकिल पर सवार होकर जाना-आना होता था। वर्षों की सेवा के बाद एएसआई के पद से सेवानिवृत्त हुए श्री महंत ने कहा कि सूचना तकनीक के इस युग में 30-40 साल पहले के मानवीय सूचना स्त्रोतों की तुलना नहीं की जा सकती। उन्होंने बताया कि तब कोतवाली थाना क्षेत्र में 21 और उरगा चौकी क्षेत्र के 103 गांव कवर होते थे। एक एडिशनल एसपी यहां बैठते थे और उनके दिशा-निर्देश में तब की पुलिस इन 124 गांवों में लॉ एंड आॅर्डर संभालती थी।


 

कोयले की कालिख से चमका भविष्य: दीपेश मिश्रा
कोरबा की धरती के नीचे कोयले का अथाह भंडार है। चार दशक पहले काले हीरे को महज दो खुली और चार अंडर ग्राउंड माइन से निकाला जाता था। विकास का पहिया घूमा। साल-दर-साल खदानों के साथ कोयले का उत्पादन भी बढ़ता चला गया। मजदूर नेता दीपेश मिश्रा बताते हैं कि 40 साल पहले कोरबा में मानिकपुर, रजगामार, बलकी, सुराकछार, बांकीमोंगरा और कुसमुंडा खदान से कोयला निकलता था। उस दौर में कुसमुंडा खदान अपने प्रारंभ काल में थी। जिले से 12 से 15 मिलियन टन कोयला का उत्पादन होता था। आज जिले में तीन मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका, कुसमुंडा और कोरबा के बूते 150 मिलियन टन से अधिक कोयले का उत्पादन संभव हो रहा है। कोयले की कालिख ने कोरबा के भविष्य को चमकाया है।


 


नहीं थी बिजली, आज देश-प्रदेश को कर रहा रोशन : राधेश्याम जायसवाल
कोरबा के पावरसिटी बनने का सफर महज 520 मेगावाट बिजली उत्पादन से हुआ था। थर्मल के साथ 120 मेगावाट के बांगो हाइडल प्लांट ने कोरबा में आकार ले लिया था। बिजली श्रमिक संघ से जुड़े नेता राधेश्याम जायसवाल बताते हैं कि 40 साल पहले कोरबा पूर्व में 50 गुणा 4 व 10 गुणा 2 की इकाइयों से बिजली उत्पादन होता था। कोरबा पूर्व में 100 मेगावाट का एक और संयंत्र था। एनटीपीसी ने भी 200 मेगावाट के साथ उत्पादन का सफर शुरू किया। यह दौर वह था, जब कोरबा के सभी इलाकों में बिजली नहीं थी। अधिकांश इलाके अंधेरे में थे। 40 बरस के सफर में आज कोरबा से राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी के डीएसपीएम और एचटीपीपी से 1840 मेगावाट, एनटीपीसी से 2600 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। अन्य निजी सेक्टर भी बिजली बना रहे हैं।


 


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