बच्चों के कोमल मन में आपराधिक प्रवृत्ति ला सकता है भय-संकोच और अकेलापन : डॉ प्रिंस मिश्रा


एकलव्य विद्यालय पोड़ी-उपरोड़ा में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर व्याख्यान आयोजित
कोरबा(thevalleygraph.com)। बच्चों के मन में भय, संकोच और अकेलापन उनके भीतर आपराधिक व्यवहार का बीज बो सकता है। बच्चों में मानसिक तनाव, कुसंगति जन्म ले सकती है। इन सभी विकारों से लड़ने की क्षमता जागृत करने की जिम्मेदारी माता-पिता, मित्र और शिक्षकों समेत उन सभी की है, जो उनके जुडेÞ हुए होते हैं। इन कारकों का एक और परिणाम आत्महत्या की प्रवृत्ति भी हो सकती है, जिससे दूर रखने उन्हें माता-पिता के संघर्ष, उनका अपने बच्चों के प्रति समर्पण क्या है, उससे उन्हें प्यार और दुलारपूर्वक बताना-जताना आवश्यक है।


यह बातें बतौर मुख्य वक्ता विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय रामपुर पोड़ी उपरोड़ा में आयोजित व्याख्यान में बच्चों को मार्गदर्शन प्रदान करते हुए डॉ प्रिंस कुमार मिश्रा ने कहीं। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य व परीक्षा के तनाव से बचने के लिए पुनर्बलन कार्यक्रम में डॉ मिश्रा ने बच्चों की सफलता और तैयारी के विषय में अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ मिश्रा का प्राचार्य व विद्यार्थियों द्वारा पुष्प गुच्छ प्रदान कर व तिलक लगाकर स्वागत किया गया। डॉ मिश्रा ने प्रेरणात्मक कहानी के माध्यम से बच्चों को हंसाया गुदगुदाया और उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ने का भी प्रयास किया। परिश्रम के सकारात्मक पक्ष को प्रकाशित करते हुए विद्यार्थियों को मानसिक तनाव से बचने के उपाय भी सरल माध्यम में बताए। भावनाओं को उदवेलित करते हुए मिश्रा ने बड़े मार्मिक ढंग से माता-पिता द्वारा बच्चों पर उनकी चिंता को बताने का प्रयास किया और चाहे माता-पिता द्वारा जो भी अपने बच्चों को कहा जाता है, वह उनके हित के लिए होता है। हमें कभी भी माता-पिता की बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए। इन बातों के साथ ही डॉ मिश्रा बड़े ही सरल ढंग से बच्चों को समझाया कि हमें किसी से द्वेष भावना नहीं रखनी चाहिए परंतु अपने आप में सक्षम बनने का प्रयास करना चाहिए। एक दूसरे से प्रतियोगिता के सकारात्मक संकेत को भी बताएं व कभी हार ना मानने के गुण को बच्चों को सिखाया।

खरगोश-कछुए की कहानी, माता-पिता की बातें ध्यान रखने की सीख
अपना संक्षिप्त परिचय बच्चों के सम्मुख रखते हुए उन्होंने राजा दशरथ के जीवन की कहानी से बच्चों को माता-पिता को हमेशा सम्मान देने की बात सिखाई। खरगोश व कछुए की कहानी बताकर एक दूसरे की सहायता से बच्चों को संगठित रहना व एक दूसरे की सहायता के साथ सीखने की सहकारिता अधिगम व सहयोगात्मक शिक्षा की बात को रखी, जिसे बच्चे ध्यान से ग्रहण भी किया। अच्छे मित्रता व अच्छी संगत से अच्छे जीवन के गुण पर भी सुंदर संवाद से प्रकाश डाला। डॉ मिश्रा ने कहानियों के माध्यम से एक नई विचारधारा का संवहन किया गया। सरल व बाल सुलभ क्रियाविधि से बच्चों के बीच मानसिक शांति का पाठ पढ़ाया।

उच्च अंक लाने से ज्यादा जरूरी है कि गलतियां न दोहराना
सफलता के लिए थोड़ा स्वार्थी भी बनना पड़ता है। हमें गलत चीजों बुरी बातों और बुरी कार्यों से हमेशा बचते हुए आगे बढ़ना चाहिए। इन बातों के साथ ही उन्होंने अपना वक्तव्य को पूरा किया। बच्चे ध्यान पूर्वक उनकी बातों को सुने और ग्रहण करने का प्रयास किए। बच्चों को भविष्य की चिंताओं से मुक्त होकर आगे बढ़ने हेतु जागरूक किया। उन्होंने यह समझाया कि पढ़ाई में उच्च अंक लाना जरूरी नहीं, जरूरी है कि गलतियों को जानकर दोहराया न जाय। जीवन में आगे बढ़ना, गिरना-सम्हालना सब होगा, केवल अपना आत्मविश्वास कायम रखकर कार्य करते रहना होगा।
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