वाइल्ड लाइफ वीक पर कमला नेहरु काॅलेज में छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई का सेमिनार आयोजित…
हमारे जंगल और घरों के आस-पास की झाड़ियों के बीच कई ऐसी वनस्पतियां और वन्य जीव हैं, जिनका अस्तित्व खतरे में है। प्रकृति, पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र का वे महत्वपूर्ण अंग हैं ही, भविष्य में जीव जगत में उनका न होना असंतुलन का कारण भी बन सकता है। बीजा-सलीहा जैसी शुद्ध देशी इमारती वृक्ष और चनहौर, कलिहारी जैसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी उस लिस्ट में शामिल हैं, जिन्हें संरक्षण-संवर्धन की बजाय सिरे से अनदेखा किया जा रहा है। यही स्थिति रही तो वह परिस्थिति बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, जब हम कहेंगे कि अब वे विलुप्त हुए। हमें हमारी अपनी यानी भारत की इस प्राकृतिक धरोहर को सहेजने के लिए समय रहते व्यापक और सार्थक प्रयास की विशेष जरुरत है। इसके लिए यह अहम होगा कि अधिक से अधिक युवा शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में कदम रखें।
कोरबा(thevalleygraph.com)। यह बातें छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई सचिव दिनेश कुमार ने कमला नेहरु महाविद्यालय में आयोजित सेमिनार में छात्र-छात्राओं को मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कहीं। गुरुवार को छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई के सहयोग व महाविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग के तत्वावधान में इस सेमिनार सह विशेषज्ञ व्याख्यान का आयोजन किया गया। वाइल्ड लाइफ वीक (Wild Life Week) के अंतर्गत इस कार्यक्रम में वन विशेषज्ञ दिनेश कुमार ने खासकर वन्य जीव संरक्षण एवं वन अधिनियम (Wild Life Protection and Forest Act) पर फोकस करते हुए अनेक महत्वपूर्ण बातें विद्यार्थियों से साझा की। उन्होंने टेक्सोनॉमी, वन्य जीव एवं वनस्पतियों की पहचान एवं वर्गीकरण समेत प्रकृति-पर्यावरण, वन्य जीव एवं वनस्पतियों के धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ने के कारणों के साथ उन्हें सहेजने की विधियों पर भी चर्चा की। कमला नेहरु महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ प्रशांत बोपापुरकर के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम को सफल बनाने प्राणीशास्त्र के सहायक प्राध्यापक वेदव्रत उपाध्याय, श्रीमती निधि सिंह एवं रसायनशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष श्रीमती गायत्री साहू ने अहम भूमिका निभाई।
अनियंत्रित दोहन से खत्म हो रही सफेद मूसली समेत अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियां
छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई के सचिव दिनेश कुमार ने यह भी बताया कि सदियों से भारत के वन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपने मर्ज के लिए जड़ी-बूटियों का बखूबी प्रयोग करते रहे हैं। अब न केवल जंगल के गर्भ में फलने-फूलने और लहलहाने वाली उन दुर्लभ वनस्पतियों की पहचान करने वाले विरले हैं, उन जड़ी-बूटियों का अस्तित्व भी धूमिल होता जा रहा है। औषधीय गुणों वाली इन वनस्पतियों में सफेद मूसली, चनहौर और कलिहारी भी शामिल हैं, जो अनियंत्रित दोहन के चलते विलुप्ति की कगार पर हैं। इन्हें बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है और खासकर विद्यार्थी होने के नाते उन्हें जानना, उनकी पहचान करना और आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित करना और भी जरुरी हो जाता है।