World Otter Day…यूरेशियन ऑटर यानी ऊदबिलाव एक ऐसा एपेक्स प्रिडेटर माना जाता है, जो मछुआरों का पीछा करते हैं। जाल काटकर उसमें फंसी सबसे बड़ी मछली उड़ा ले जाते हैं। शातिर दिमाग इतने कि शिकार करने की बजाय मछुआरों की नाव के पीछे पीछे चले जाते हैं। कई बार उनकी नाव को पानी के नीचे से धक्का भी मारते हैं। मछुआरों के जाल में सबसे बड़ी मछली को ढूंढ निकाल ये जाल को काट देते हैं। इसलिए मछुआरे परेशान भी होते हैं और इनके लिए खतरे की स्थिति भी निर्मित होती है। महत्वपूर्ण बात है कि ऊदबिलाव की यह प्रजाति कोरबा के जंगलों में भी निवास करती है। इनके संरक्षण और लोगों की जागरूकता के लिए वन विभाग के मार्गदर्शन और छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई द्वारा शोध-अध्ययन एवं खोज कार्य किया जा रहा है। अब तक की रिसर्च में नई बात ये सामने आई है कि जंगलों से ज्यादा यूरेशियन ऊदबिलाव को आबादी के पास रहना ज्यादा पसंद है। विस्तृत अध्ययन और डाटा एकत्र हो जाने के बाद संरक्षण की व्यापक कार्ययोजना तैयार कर कार्य शुरू लिए जाने की बात कही जा रही है।
कोरबा(theValleygraph.com)। पूरी दुनिया में 13 प्रकार के ऊदबिलाव मिलते हैं। इनमें भारत में तीन प्रजाति पाई गई है, जिनके कोरबा में भी होने की उम्मीद जताई गई है। कोरबा वनमंडल के उप वनमंडलाधिकारी आशीष खेलवार के मार्गदर्शन में कोरबा जिले में ऊदबिलाव के संरक्षण की दिशा में प्रयास किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई के विशेषज्ञों की टीम आवश्यक आंकड़े जुटाने अध्ययन कर रही है। छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की राज्य संयुक्त सचिव श्रीमती निधि सिंह ने बताया कि ऊदबिलाव एक तरह से एपेक्स प्रिडेटर होता है। पूरी दुनिया में 13 प्रकार के ऊदबिलाव मिलते हैं। इनमें भारत में तीन प्रजाति पाई गई है और महत्वपूर्ण बात है कि अब तक मिले इंडायरेक्ट इंडिकेशन और साक्ष्य पर गौर करें तो कोरबा के जंगलों में भी इन तीनों की प्रजातियों का बसेरा माना जा रहा है। अब इनके फोटोग्राफिक साक्ष्य की तलाश की जा रही है, जिससे शत प्रतिशत पुष्टि की जा सकेगी। इनमें स्मूद कोटेड, दूसरा स्मॉल क्लॉड और तीसरा यूरेशियन ऑटर शामिल है। यूरेशियन ऑटर की प्रत्यक्ष मौजूदगी कोरबा में चिन्हांकित और सूचीबद्ध भी गई है।
किसी वन्य जीव आवास सुरक्षित कर दें, अपने आप ही संरक्षण सुनिश्चित हो जाएगा : SDO आशीष खेलवार
कोरबा वनमंडल के SDO आशीष खेलवार ने बताया कि हमारे जंगल में भी ऊदबिलाव का बसेरा है, यह कोरबा जिले के लिए काफी महत्वपूर्ण विषय है। खास बात यह है कि अब तक के रिसर्च में एक रोचक बिंदु यह भी सामने आया है कि ऊदबिलाव जंगल के अलावा आबादी वाले क्षेत्र में ज्यादा संख्या में पाए जाते हैं। अभी तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया था। इसलिए इनके संरक्षण की आवश्यकता पर फोकस करते हुए वन विभाग प्रयासरत है। यह जीव तेजी से दुर्लभ होता जा रहा है और अगर अभी इनके संरक्षण की पहल न की गई तो वे विप्लुप्त हो जाएंगे। श्री खेलवार ने कहा कि लोग इस दुर्लभ वन्य जीव के बारे में जाने, कोरबा में कौन कौन सी प्रजाति पाई जाती है, इनका रहन-सहन कैसा होता है, क्या खाता है और कैसे स्थलों में अपनी मांद बनाता है। भारत और हमारी प्रकृति के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है, यह सभी न केवल हम सब को, खासकर युवा पीढ़ी और बच्चों के ज्ञानवर्धन की दृष्टि से भी काफी अहम है। इन सब बातों को लेकर फिलहाल हम रिसर्च वर्क कर रहे हैं और पहले चरण में ऊदबिलाव के आवास दृश्यावलोकन पर जानकारी जुटाई जा रही है। वन विज्ञान में ऐसा माना जाता है कि किसी भी वन्य जीव के आवास को सुरक्षित कर लें तो उसका संरक्षण भी खुद ब खुद हो सकता है। उसके विस्तृत अध्ययन के बाद जब सारे जरूरी आंकड़े एकत्र होंगे, ऊदबिलाव संरक्षण की दिशा में एक व्यापक कार्ययोजना तैयार की जाएगी।
World Otter Day पर NTPC और पथर्रीपारा में छग विज्ञान सभा ने किया जागरूकता कायक्रम
विश्व ऊदबिकाव दिवस पर बुधवार 29 मई 2024 को छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई के सदस्यों द्वारा NTPC कोरबा टाउनशिप में कृषि मंदिर सर्वेश्वर शिव मंदिर और कोरबा पथर्रीपारा क्षेत्र में जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान CG विज्ञान सभा की राज्य संयुक्त सचिव श्रीमती निधि सिंह, कोरबा इकाई के सचिव दिनेश कुमार, कोरबा इकाई के सह सचिव वेद व्रत उपाध्याय, सुमित सिंह, फील्ड अस्सिटेंट रघु सिंह, विक्की सोनी, लोकेश राज चौहान, गौरव यादव और सागर साहू ने योगदान दिया। श्रीमती निधि सिंह ने बताया कि यूरेशियन ऑटर काफी विशेष प्रजाति होती है। छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा कोरबा इकाई की टीम द्वारा ही सबसे पहले कोरबा में इस प्रजाति के एक बच्चे को रेस्क्यू किया गया था। इस रेस्क्यू मिशन की रिपोर्ट भी PCCF के समक्ष प्रस्तुत की जा चुकी है। तभी पता चला था कि कोरबा में भी यूरेशियन ऑटर की इस विशेष प्रजाति की मौजूदगी है। एनटीपीसी टाउनशिप में कृषि मंदिर सर्वेश्वर शिव मंदिर और कोरबा पथरीपारा क्षेत्र में जन जागरूकता कार्यक्रम किया गया।
यूरेशियन ऊदबिलाव के व्यवहार से जुड़ी कुछ खास बातें
0 यूरेशियन ऑटर अधिकतर अकेले घूमते हैं और यह रात्रिचर जीव होता है। बहुत मुश्किल से दिन में दिखते हैं।
0 जमीन के अलावा ये कई बार पानी के नीचे भी मांद बनाकर रहते हैं।
0 मेटिंग के समय ही नर और मादा साथ होते हैं।
0 यह जून-जुलाई में बच्चे देता है, जिनमें एक बार में एक या दो बच्चे ही होते हैं।
0 बच्चों के जन्म के बाद उनकी देखभाल के लिए मादा अलग हो जाती है।
0 मां अपने बच्चों को तीन माह तक पानी में नहीं उतरती है।
0 तीन माह की उम्र होने पर मां उसे अपनी छाती में बिठाकर धीरे धीरे तैरना सिखाती है।
0 मछली, घोंघे और कई बार चिड़िया का भी शिकार कर लेते हैं।
0 मछली के लिए कई बार ये मछुआरे के पीछे भी जाते हैं और जाल काटकर सबसे बड़ी मछली चुरा ले जाते हैं।
0 खाद्य श्रृंखला में इन्हें apex predator कहा गया है क्योंकि ये बेहद माहिर शिकारी होते हैं। ऊदबिलाव थल ही नहीं जल में भी शिकार कर सकते हैं।
0 छुपने में इतने माहिर कि पानी और पत्थरों के बीच छुपे बैठे रहने पर देख पाना नामुमकिन हो जाता है।
0 8-10 माह से एक साल की उम्र तक बच्चा अपनी मां के इर्द गिर्द ही रहता है और तब तक अपनी अलग Territory या इलाका नहीं बनाता।
0 सूंघने की तेज शक्ति, कैमरे को भी सेंस कर लेते हैं और वन्य जीव एक्सपर्ट्स के लिए इनकी तस्वीरें खींच पाना भी काफी चैलेंज भरा काम है।
0 12 से 13 तरह की अलग अलग आवाजें निकालने में सक्षम होते हैं, जिससे शोधार्थियों के लिए इन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है।