King Cobra और कोरबा के जंगल में रहने वाले दूसरे दुर्लभ रेप्टाइल्स का अध्ययन करेंगे सरीसृप विशेषज्ञ


स्थानिक वितरण और संरक्षण सम्बंधित समस्याओं पर अध्ययन कर जुटाएंगे डाटा, ताकि किए जा सकें उनके लिए अनुकूल दशा का इंतजाम

कोरबा(thevalleygraph.com)। किंग कोबरा समेत ऐसे अनेक दुर्लभ जीव हैं, जिनके लिए कोरबा के जंगल वर्षों से पसंदीदा ठिकाना रहे हैं। उड़न गिलहरी ( flying squirrel ), खूबसूरत तितलियां व पैंगोलीन जैसे कई छुपे हुए जीव हैं, जिन्होंने समय-समय पर अपनी झलक दिखाकर यह भी बताया कि कोरबा की डायवर्सिटी कितनी अनोखी है और इसे सेहजकर रखने की जरूरत है। यही जरूरत समझते हुए एक और कदम उठाया जा रहा है। इसके तहत अब किंग कोबरा ( king cobra ) ही नहीं, सर्प समेत वन में पाए जाने वाले अन्य सरीसृपों पर एक व्यापक अध्ययन किया जाएगा। इसके लिए वन विभाग सरीसृप विशेषज्ञ की जुगत में जुट गया है, जो स्थानिक वितरण और संरक्षण सम्बंधित समस्याओं पर अध्ययन कर वह डाटा जुटाएंगे, जिनकी मदद से इन दुर्लभ जीवों के लिए अनुकूल दशा का इंतजाम सुनिश्चित किया जा सके।

किंग कोबरा के पसंदीदा क्षेत्र के रूप में पहचान बना चुके कोरबा में अब सरीसृप विशेषज्ञ इस संरक्षित प्रजाति के बारे में गहन अध्ययन कर उन बातों को सूचीबद्ध करेंगे, जिनके बारे में अब तक हम अनभिज्ञ हैं। किंग कोबरा समेत हमारे जंगल में पाए जाने वाले अन्य सरीसृप का अध्ययन किया जाएगा, ताकि उनके संरक्षण की दिशा में व्यापक प्रयास किए जा सके। जिले के कोरबा वनमण्डल अंतर्गत किंग कोबरा व अन्य सरीसृपों के स्थानिक वितरण (speciale distribution) और संरक्षण सम्बंधित समस्याओं पर अध्ययन करने विषय विशेषज्ञ के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। कोरबा के वन्य क्षेत्र में कुदरती खूबसूरती के साथ अनेक दुर्लभ वन्य जीवों को रहवास है। यहां विभिन्न प्रकार के जीवों के अलावा सांपों के लिए भी काफी अनुकूल वातावरण है। कोरबा जिले की बात करें, तो जशपुर के बाद इसे दूसरा नागलोक कहा जाने लगा है। हमारे जंगल में सर्पों के राजा, यानि किंग का भी घर है, जो समय-समय पर देखने को मिलते रहे हैं। इसे संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया है, जिसकी सुरक्षा की व्यवस्था और भी जरूरी हो जाता है। एक दशक पहले तक पश्चिमी घाटी और तराई क्षेत्रों में पाए जाने वाले किंग कोबरा की कोरबा में भी मौजूदगी देखी गई। वर्ष 2014 में सबसे पहले कोरबा जिले के केराकछार में किंग कोबरा देखा गया। इसके बाद पसरखेत व बताती के आस-पास घरों में घुसते व खेतों में घूमते कई बार इस विशालकाय सर्प को देखा जा चुका है।

लेमरू व पसरखेत वन परिक्षेत्र में ही ढाई सौ से अधिक संख्या
वन विभाग की ओर से कराए गए सर्वे में यह पुष्ट हुआ है कि लेमरू व पसरखेत वन परिक्षेत्र में किंग कोबरा की संख्या सर्वाधिक है। इस क्षेत्र को किंग कोबरा का सुरक्षित व संरक्षित आवास (रहवास क्षेत्र) के रूप में विकसित करने की दिशा में भी वन विभाग योजना बना चुका है। वन विभाग के अधिकारी किंग कोबरा की उपस्थिति के मिल रहे संकेत को गंभीरता से लेते हुए उसके रहवासी क्षेत्र को चिन्हांकित करने एक सर्वे कराया था। इस दौरान लेमरू व पसरखेत वन परिक्षेत्र में ही ढाई सौ से अधिक किंग कोबरा मिले। वन विभाग ने किंग कोबरा के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर राज्य शासन को सौंपा था।

विशेष प्रशिक्षण देकर जन-जागरुकता का भी प्रयास
सरीश्रप विशेषज्ञों के चयन के उपरांत वनमंडल के अंतर्गत किंग कोबरा (सांप प्रजाति) व अन्य सरीसृपों के संरक्षण व संवर्धन हेतु विस्तृत अध्ययन तो किया ही जाएगा, संरक्षण का उद्देश्य कारगर बनाने विशेष प्रशिक्षण भी शुरू किया जाएगा। इस तरह संबंधित क्षेत्र में जन जागरूकता लाने का प्रयास किया जाएगा। विषय विशेषज्ञ के चयन की प्रक्रिया वनविभाग की ओर से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक पूर्ण कर ली जाएगी। किंग कोबरा एक ऐसा सांप है जिससे अन्य सांपों की प्रजातियां भी नियंत्रित होती है, जिसके कारण खाद्य श्रृंखला में किंग कोबरा की उपस्थिति बेहद जरूरी है। जल्द ही कोरबा में किंग कोबरा के निवास को विकसित करने महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे। इससे कोरबा की जैव विविधतता और समृद्ध होगी।

क्या है स्थानिक वितरण पर अध्ययन
सरीसृप विशेषज्ञों के माध्यम से इस स्थानिक वितरण संबंधी अध्ययन पर फोकस किया जाएगा। स्थानिक वितरण (स्पेशियल डिस्ट्रीब्यूशन) में पृथ्वी की सतह पर नजर आने वाले जीवों, उनके विचरण, आहार-विहार और हलचल से संबंधित व्यवस्था प्रणाली का ग्राफिकल प्रदर्शन, भौगोलिक और पर्यावरणीय आंकड़ों को पता लगाने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। वन जैविविधता से समृद्ध है। यहां पर समय समय पर नई प्रजातियां मिलती है, जिन पर खोज (शोध) किए जाने की आवश्यकता। केसला में बायो डायवर्सिटी पार्क का कंसेप्ट भी तैयार किया गया था। दुर्लभ सर्पों में किंग कोबरा के अलावा वर्ष 2020 में यहां के लेमरु वन परिक्षेत्र में मालाबार पिट वाइपर भी पाया गया था। यह पिट वाइपर पश्चिम घाट में एडेमिक है, पश्चिम घाट के आलावा पहली बार अन्य स्थान पर मिला था।


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