High Court Bilaspur के अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला ने चिकित्सक की पैरवी की, उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 में कोतवाली पुलिस ने धारा 338 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज कर चालान बनाया व चार्जशीट भी फाइल की थी, इस पर उन्होंने कोर्ट से स्टे दिलवाया, बीते दिनों हुए फाइनल आर्डर में सुप्रीम कोर्ट के जेकब मैथ्यू जजमेंट के बेस पर उच्च न्यायालय के Chief Justice Ramesh Sinha ने केस को क्वॉश करते चार्ज शीट, एफआईआर और ट्रायल पूरी तरह से रद्द (copy of order) कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ब्रीफ में जेकब मैथ्यू वाले जजमेंट को डिस्कस किया है कि “There has to be a medical opinion before registration of an FIR against the doctor.”
कोरबा(thevalleygraph.com)। बीते दिनों उच्च न्यायालय बिलासपुर के प्रधान न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने एक बहुत अच्छा आर्डर पास किया, जिससे शहर के ख्यातिलब्ध चिकित्सक डॉ राजेंद्र साहू को बड़ी राहत मिली है। उनके खिलाफ वर्ष 2015-16 में एक एफआईआर दर्ज की गई थी, जो पिछले आठ साल से हाईकोर्ट से स्टे पर था। धारा 338 आईपीसी के तहत चिकित्सक पर दर्ज एफआईआर, चालान और ट्रायल को प्रधान न्यायाधीश ने पूरी तरह रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि बिना किसी मेडिकल ओपिनियन या मेडिकल बोर्ड की जांच कराए ही पुलिस ने डॉक्टर पर एफआईआर दर्ज कर दी, जो मेंटेनेबल नहीं है। उन्होंने इस केस में सुप्रीम कोर्ट के जेकब मैथ्यू जजमेंट को साइट करते हुए अपना फाइनल आर्डर पास किया।
अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ राजेंद्र साहू पर दर्ज यह आपराधिक मामला करीब आठ साल पुराना है। मेडिकल प्रैक्टिस के दौरान उन्हें अपने एक मरीज के हाथ का एम्युटेशन या उसका हाथ काटना पड़ा था। उन पर पुलिस ने अंडर सेक्शन 338 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज की थी। कोतवाली पुलिस थाना KORBA अंतर्गत यह घटना वर्ष 2015 की है और तभी से मामले में बिलासपुर हाई कोर्ट से स्टे चला आ रहा था। इस केस में डॉ साहू की ओर से उच्च न्यायालय में उनका पक्ष रखने वाले विद्वान अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला ने बताया कि चीफ जस्टिस के न्यायालय में केस रखा गया, जिसमें केस को क्वैश करते हुए एफआईआर रद्द कर दिया गया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने चार्ज शीट, एफआईआर और ट्रायल पूरी तरह से रद्द कर दिया है। अभी उस केस में फाइनल आर्डर आया है। मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने सेक्शन 482 के तहत प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एफआईआर को रद्द कर दिया है। उन्होंने कहा कि बिना किसी मेडिकल ओपिनियन प्राप्त किए, किसी मेडिकल बोर्ड की जांच या सुझाव लिए बगैर ही पुलिस ने न केवल अपराध दर्ज कर लिया, चालान बनाया और चार्जशीट भी पेश कर दी। श्री सिन्हा ने कहा है कि सबसे पहले ऐसे किसी मामले में मेडिकल ओपिनियन लिया जाना है और अगर मेडिकल बोर्ड की जांच में चिकित्सक दोषी पाया जाता है, तभी उस पर एफआईआर दर्ज कर पुलिस कार्यवाही की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ब्रीफ में जेकब मैथ्यू वाले जजमेंट को डिस्कस किया है कि “There has to be a medical opinion before registration of an FIR against the doctor.” इस लॉ प्वाइंट पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने जेकब मैथ्यू जजमेट को साइट करते हुए यह कहा डॉक्टर के खिलाफ जो एफआईआर किया गया है, वह मेंटेनेबल नहीं है और हम ये एफआईआर और जो चालान पेश किया गया है, उन सब को रद्द करते हैं। डॉक्टर के खिलाफ केस क्वैश कर दिया गया है।
विदाउट एनी मेडिकल ओपिनियन, लॉ प्वाइंट लेट डाउन से जजमेंट पास : अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला
अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला ने बताया कि किसी चिकित्सक के खिलाफ अगर एफआईआर दर्ज करते हैं, तो उससे पहले मेडिकल बोर्ड या मेडिकल ओपिनियन जरुरी है। बोर्ड में यह बताना होगा कि इनके खिलाफ एक कंप्लेन आई है, जिसके आधार पर अगर बोर्ड दोषी पाता है, तब पुलिस एफआईआर की जानी चाहिए। पर यहां बिना किसी मेडिकल ओपिनियन लिए ही पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही शुरु कर दी और चालान भी पेश कर दिया गया था। इस हाई कोर्ट ने जेकब मैथ्यू नामक सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है, जिसके आधार में यह पाया कि जब कभी किसी चिकित्सक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हैं तो पहले मेडिकल बोर्ड, शासन के मेडिकल स्पेशलिस्ट की ओपिनियन के आधार पर ही एफआईआर की कार्यवाही करें, अन्यथा यह कार्यवाही मेंटेनेबल नहीं है। इस जेकब मैथ्यू जजमेंट को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने मेंशन करते हुए मामले में एफआईआर, चालान और ट्रायल तीनों को रद्द कर दिया है। इस तरह इस केस में कान्टिट्यूशनल लॉ प्वाइंट (विदाउट एनी मेडिकल ओपिनियन) लेट डाउन कर मामले को रद्द करते हुए चीफ जस्टिस ने यह पूरा जजमेंट पास किया है।
एफआईआर क्वॉश, यानि डॉक्टर पर कोई क्रिमिनल केस था ही नहीं
अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला ने बताया कि यह आर्डर पास कर चिकित्सक को बहुत बड़ी राहत माननीय उच्च न्यायालय ने प्रदान की है। उन्हें पेशी में जाना पड़ता, पूरा केस लड़ना पड़ता, इन सब से राहत मिल गई है। इसके साथ ही एक बहुत बड़ी स्टिग्मा लग जाता है कि एक डॉक्टर के खिलाफ में एफआईआर हो गया। पर हाई कोर्ट ने पूरे एफआईआर को ही रद्द कर दिया है, तो उनके खिलाफ जो एक क्रिमिनल केस बन गया था, एक क्रिमिनल बैग्राउंड बन गया था, ऐसे में अगर आप वीजा या अन्य किसी चीज के लिए एप्लिकेशन फॉर्म भरते हैं, तो दिक्कत आती है। चूंकि हाईकोर्ट ने एफआईआर को ही क्वॉश कर दिया है तो उन्हें यह रिलीफ मिल गया कि इन पर कोई क्रिमिनल केस था ही नहीं। ऐसे में तो डॉक्टर किसी का इलाज करने में ही डरेंगे।