कृषि महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने किया धान में पेनिकल माइट का अवलोकन, उपचार की विधियों से भी हुए रूबरू। कक्षा में किताबों की सैद्धांतिक पढ़ाई के साथ विषय की प्रायोगिक जानकारी भी बहुत जरूरी है। खेत में फसलों को होने वाली बीमारियों, उन्हें पहचानने के लक्षण, उपचार के भौतिक और रासायनिक विधियों का ज्ञान भी आवश्यक है। यही उद्देश्य लेकर कृषि महाविद्यालय के विद्यार्थियों को धान में पेनिकल माइट का अवलोकन करते हुए उपचार की विधियों से भी रूबरू कराया गया। उन्हें बताया गया है अगर बालियों के दाने तोते की चोंच की आकार ले चुके हों, तो समझ लें कि धान की फसल पैरोट बिकिंग की चपेट में आ चुका है, जो इस रोग का वैज्ञानिक नाम है।
कोरबा(theValleygraph.com)। कृषि महाविद्यालय व अनुसंधान केंद्र लखनपुर कटघोरा के अधिष्ठाता डॉ. एसएस पोर्ते व प्राध्यापक डॉ. दुष्यंत कुमार कौशिक (कीट विज्ञान) के मार्गदर्शन में चतुर्थ वर्ष की छात्र-छात्राओं द्वारा ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव के तहत कृषि महाविद्यालय के धान के फसल किस्म -इंदिरा एरोबिक में सहायक प्राध्यापक डॉ. दुष्यंत कुमार कौशिक (कीट विज्ञान) से पेनिकल माइट का अवलोकन करना सीखें, जिससे गोद ग्राम विजयपुर के किसानों को पेनिकल माइट का आक्रमण व उससे होने वाली छति को पूर्ण रूप से समझाया जा सके तथा किसान भाइयों को पेनिकल माइट से होने वाली क्षति से बचाया जा सके।
धान का पेनिकल माइट एक सूक्ष्म अष्टपादी जीव है जिसका आकार 0.2एमएम से 1एमएम तक होता है। शरीर पारदर्शी धूसर क्रीम रंग का होता है। नर माइट में पिछला पैर लंबा तथा शरीर मद से छोटा होता है। मादा पौधे के बाहरी शीथ पर 50 अंडे देती है। अंडे पारदर्शी अंडाकार होते हैं अनिशेचित अंडे नर बनते हैं। अंडे 2 से 4 चार दिनों में फूटते हैं पेनिकल माइट में एक दिन सक्रिय लार्वा अवस्था (इल्ली अवस्था) होती है। इसका पूरा जीवन चक्र 10 से 13 दिन का होता है। इस पेनिकल माइट को 30गुणा अवार्धन लेंस से ही देखा जा सकता है।
पेनिकल माइट द्वारा क्षति की प्रकृति
पेनिकल माइट (मकड़ी) मुख्य पत्ती के भीतर पत्ती शीथ से रस चुसती है जिसे दालचीनी रंग के या भूरे चॉकलेटी चकतों से पहचाना जा सकता है। पत्ती के बाहरी शीथ को निकालने से मकड़ी की उपस्थिति जानी जा सकती है। गभोट तथा दोनों में दूध भराव की अवस्था में यह मकड़ी विकसित हो रहे दोनों को नुकसान पहुंचती है। धान फसल में माइट का आक्रमण होने पर माइट शीथ के अंदर खुरच खुरचकर रस को चूस लेते हैं। इनके खुरचने के कारण पौधों में घाव सा बन जाता है जिससे वह बाहरी हवा के संपर्क में आसानी से आ जाने के कारण हवा में मौजूद कई प्रकार के हानिकारक फफूद जैसे झुलसा, भूरा धब्बा नेक राट के फफूंद द्वारा भी पौधे संक्रमित हो जाते हैं। पहले से मौजूद शीत ब्लाइट के फफूंद है तो माइट की प्रवृत्ति होती है कि वह पौधों में ऊपर से नीचे व नीचे से ऊपर आते जाते रहते हैं जिसके कारणवश माइट के शरीर व पैर में से हानिकारक फफूंद तेजी से पौधों में फैल जाते हैं।
पेनिकल माइट के लक्षणों को समझें
पेनिकल माइट के लक्षणों की पहचान जरूरी है, ताकि उचित उपचार शुरू किया जा सके। पत्ती शीथ का बदरंग या भूरा हो जाना, पत्तियों में छोटे-छोटे भूरे धब्बे बन जाना, पेनिकल माइट (मकड़ी) के अधिक प्रकोप की अवस्था में दाने अनियमित आकार ले लेते हैं। दाने कत्थई रंग होकर दूध भराव रहित पोचे या बदरा हो जाता है। बलियों के दाने तोते की चोंच जैसी आकर ले लेते हैं जिसे वैज्ञानिक भाषा में पैरोट बिकिंग कहते हैं।
पेनीकल माइट बढ़वार के लिए अनुकूल परिस्थितियां
अधिक तापमान तथा कम बारिश होना माइट के बढ़वार के लिए उपयुक्त है। पेनिकल माइट के लिए 25.5 सेंटीग्रेड से 27.5 सेंटीग्रेड तापमान तथा आद्रता 80 से 90 उपयुक्त है। लगातार धान की फसल लेना पेनिकल माइट की बढ़वार के लिए अनुकूल है। खेतों में कृषि उपकरणों, यंत्रों के साझाकरण से प्रकोप एक खेत से दूसरे खेत में फैलता है अत: सफाई का ध्यान रखना चाहिए। माइट का प्रकोप धान के संपूर्ण जीवन काल में होता है लेकिन गभोट तथा बाली में दूध भराव की अवस्था अधिक संवेदनशील हो जाता है
रासायनिक नियंत्रण की विधि
चूंकि धान में माइट के आक्रमण के साथ ही साथ हानिकारक फफूंद का भी आक्रमण हो जाता है। अत: फंजीसाइड को मिलाकर दवा का छिड़काव करना चाहिए । इस हेतु धान की गभोट अवस्था एवं धान की बाली निकलने से पहले डाइफेनथ्यूरआन 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी प्लस प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 1 मिलीलीटर प्रति 1 लीटर पानी की दर से आपस में अच्छी तरह से दवाइयां को मिलाकर फसल में छिड़काव करना चाहिए।
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