डॉक्टरों ने हार मान ली पर लड़ गई लक्ष्मी, थर्ड स्टेज में कैंसर को शिकस्त देकर जिंदगी जीत गई टीचर दीदी


कैंसर दिवस : पाली के प्राथमिक स्कूल ठाड़पखना में सहायक शिक्षिका लक्ष्मी तिवारी के संघर्ष और विजय की कहानी

शिक्षिका लक्ष्मी उन साहसी महिलाओं में एक हैं, जिन्होंने अपनी दृढ़ता और आत्मबल से न केवल तीसरे स्टेज के रक्त कैंसर को शिकस्त दी, बल्कि अपने कर्तव्य पथ पर विजयी मुस्कान के साथ वापसी की। चार महीने अस्पताल के बिस्तर पर गुजारे, 100 से ज्यादा बार कीमोथेरेपी की दर्दभरी प्रक्रिया बर्दाश्त की। डॉक्टरों ने हार मान ली और कह दिया कि ज्यादा से ज्यादा छह माह शेष हैं। पर लक्ष्मी हर पल मजबूत होती चली गर्इं और कठिनतम परिस्थितियों का डटकर सामना किया। आखिरकार उनके साहस और भरोसे की जीत हुई और उन्होंने सातवें माह कैंसर को हराकर एक नई जिंदगी में कदम रखा।

कोरबा(thevalleygraph.com)। कैंसर से उनकी जंग तब शुरू हुई, जब वह तीसरे स्टेज में पहुंच चुकी थीं। पर उनके साथ पति, परिवार और दो छोटे बच्चों का प्यार था, जिसकी ताकत के सहारे उन्होंने रगों में घूमते रोग को शिकस्त देकर जिंदगी की यह लड़ाई जीत ली। श्रीमती लक्ष्मी तिवारी वर्तमान में पाली विकासखंड के प्राथमिक शाला ठाड़पखना में सहायक शिक्षिका (एलबी) के पद पर कार्यरत हैं। सितंबर 2013 में अचानक तबीयत बिगड़ने लगी। उन्हें बार-बार बुखार आना, कमजोरी महसूस होना, जैसी शिकायतें आई। कोरबा में जांच कराई तो पहले उन्हें टीबी बताकर दवाइयां शुरू की गई। राहत न मिली तो रायपुर जाकर जांच कराई। वहां भी उन्हें टीबी ही बताया गया। साथ में एक चिकित्सक ने बड़े अस्पताल में कुछ और टेस्ट कराने की सलाह दी। इस बार की टेस्ट रिपोर्ट में परिस्थितियां बदल चुकी थीं। अक्टूबर 2013 में डायग्नोस हुआ और उन्हें रक्त कैंसर (एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया) होने की पुष्टि की गई। इसके बाद सही दिशा में इलाज शुरू हुआ और मार्च 2014 में वह ठीक हुईं। आज वह बिल्कुल स्वस्थ हैं। वे सरल मुस्कान से सदैव बच्चों को उत्साहित करती रहती हैं। अपनी क्षमता बोध से शैक्षिक विकास के दायित्व निभा रहीं हैं। लक्ष्मी ने कहा कि मुझे मेरे पति सुशील तिवारी का भरपूर प्यार व सहयोग मिला, जिससे इस बीमारी से लड़ने की हिम्मत मिली। मुझे कभी नहीं लगा कि मेरे केश चले गए, शरीर कमजोर हो गया, क्योंकि हर कदम पर मेरे पति मेरे साथ रहे। उन्हीं की हिम्मत ने मुझे कैंसर से लड़ने की ताकत दी और मैंने जिंदगी जीत ली।

डाक्टर ने कहा था- 6 माह की सांसें शेष, 7वें माह ड्यूटी पर थीं

यह जानलेवा बीमारी भी उन्हें उनके दायित्वों को पूरा करने से ज्यादा दिनों तक रोक न सकी। कोरबा-रायपुर से महानगर मुंबई तक के बड़े अस्पताल व डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। इलाज में खर्च की बजाय उन्हें नियती को मान लेने की बात कही गई। डाक्टरों ने यहां तक कहा था कि उनके पास ज्यादा से ज्यादा छह माह की सांसें शेष है, पर लक्ष्मी और उनके परिवार ने हार न मानी। जिंदगी के लिए संघर्ष पर डटी रहीं, असहनीय दर्द सहे और कैंसर के खिलाफ जंग में जीत दर्ज करते हुए सातवें माह अपने ड्यूटी पर वापसी दे दी। अक्टूबर से मार्च तक मेडिकल व अवैतनिक अवकाश पर रहीं और फिर काम पर वापसी कर अपनी जिम्मेदारियां निभाने पूरे उत्साह से जुट गर्इं

अपने संघर्ष के अनुभव से दूसरों का हौसला बढ़ा रहीं

अपनी व अपने परिवार की उन कठिन परिस्थितियों को यूं ही भुला देने की बजाय शिक्षिका लक्ष्मी ने अपने संघर्ष के दिनों के उन अनुभवों को दूसरों में हौसला भरने का हथियार बना लिया। दीपका के प्रगतिनगर में रहने वाली लक्ष्मी घर से रोज 40 किलोमीटर दूर अपने स्कूल जातीं हैं। अध्यापन कार्य की अहम जिम्मेदारी के बाद भी समय निकालकर अब वे लोगों से मिलती हैं और कैंसर से जूझने वालों को सही दिशा में आगे बढ़कर इस बीमारी पर जीत हासिल करने प्रेरित व प्रोत्साहित भी करती हैं। इस मुहिम में हर क्षण साथ निभाने वाले उनके पति सुशील तिवारी भी मदद करते हैं।


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