सांसद व कोरबा लोकसभा प्रत्याशी श्रीमती ज्योत्सना चरणदास महंत ने कहा कि चुनाव मैदान में मेरी प्रतिस्पर्धी अपना काम कर रहीं हैं और मैं अपना काम कर रही हूं। पर दो नारियों के बीच स्वच्छ प्रतिस्पर्धा होगी, यह मुकाबला ऐतिहासिक होगा, प्रतिस्पर्धी से यही उम्मीद है। लक्ष्य ही नहीं, वह रास्ता भी मायने रखता है, जिस पर हम चले, यात्रा में टकराए लोग आपसे अच्छी यादें लेकर विदा करें तो जीत सफल हो जाती है, मैं भी बस वही कर रहीं हूं।
कोरबा(thevalleygraph.com)। लोकसभा की प्रतिष्ठापूर्ण सीट पर अपना-अपना झंडा थामें दो महिला नेत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है। मैदान में डटी इन प्रत्याशियों के बीच रोचक भिड़ंत देखने को मिलेगी, लोग भी यही अपेक्षा कर रहे हैं। कल क्या होगा, इसकी बात करना बेमानी होगी, पर फिलहाल मैदान में डटी इन नेत्रियों के जेहन में कौन सी हल-चल मची हुई है, यह जानना भी काफी रोचक होगा। यही जानने की कोशिश करते हुए “thevalleygraph.com” ने मौजूदा सांसद व कांग्रेस उम्मीदवार श्रीमती ज्योत्सना चरणदास महंत से बात की। उनसे कुछ सवाल किए। चर्चा काफी इंटरेस्टिंग रही और उम्मीद है कि चुनावी माहौल में उनके जवाब जानकर आप भी जरुर रोमांचित होंगे।
“मेरे लिए लक्ष्य जितना जरुरी है, उसे पाने के लिए तय किए गए रास्ते भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। जीत तो हासिल करनी है, पर उन कड़वे अनुभवों के साथ नहीं, जो आपने रास्ते में कमाए हैं। मुझे तो उन सुखद अनुभूतियों के साथ इस चुनावी प्रतिस्पर्धा में जीत हासिल करना है, जिसमें यात्रा के दौराने मिले या जुड़े लोगों के चेहरे की मुस्कान याद रह जाए। इसलिए मेरे विचार में यह एक स्वच्छ प्रतिस्पर्धा है और कोरबा लोकसभा का चुनाव मैदान साझा कर रहीं प्रत्याशी मेरे लिए एक प्रतिस्पर्धी, जिनके लिए शायद रास्ता मायने नहीं रखता, सिर्फ मंजिल जरुरी है और वह भी हर कीमत पर। खुशी इस बात की है कि पहली बार कोरबा लोकसभा की सीट पर दो महिला नेत्रियां आमने-सामने हैं और उम्मीद है कि यह मुकाबला ऐतिहासिक होगा।”
सवालः- आपके साथ लोकसभा चुनाव का मैदान साझा कर रहीं प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक अनुभव में आपसे कहीं आगे हैं, कई चुनाव लड़ चुकी हैं, जीत चुकी हैं। इस मुकाबले में आप खुद को कैसे आंक रहीं हैं?
जवाबः- अव्वल तो वह प्रतिस्पर्धी हैं और अनुभव तब काम आता है, जब जनता आपके साथ हो। राजनीति सिर्फ शासन की नीति नहीं, सही मायनों में इसका अर्थ है, उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला। दूसरे शब्दों में कहें तो जनता के सामाजिक, आर्थिक व सार्वजनिक जीवन स्तर को ऊंचा करना ही राजनीति है। अगर इस उद्देश्य को पाने की सोच व लगन मन में और समर्पण शरीर में हो, तो निष्ठापूर्वक की गई आपकी कोशिशें इस लक्ष्य को हासिल करने की कला सिखा ही देती है। मैं भी तो वही कर रही हूं। रही बात प्रतिद्वंद्विता की, तो यह शब्द विपक्षी प्रत्याशी के लिए सटीक बैठता है। मेरे लिए वह एक प्रतिस्पर्धी हैं और प्रतिस्पर्धा में उतरने वाला खिलाड़ी अगर एक ही ट्रैक पर दौड़ लगाए तो एक सेकेंड के हजारवें हिस्से में भी वह भारी पड़ सकता है। विजेता वही बनता है, जो जीतता है, फिर चाहे आरंभ से अंत तक कोई आगे हो या पीछे, जीत मायने रखती है और वह तो सुनिश्चित है।
सवालः- ऐसा लग रहा कि आप शांति व आपकी प्रतिस्पर्धी क्रांति में विश्वास रखती हैं। वे लगातार हमलावर मोड पर हैं। फिर आप क्यों मौन नजर आती हैं, आप जुबानी जंग का जवाबी मुकाबला पेश करने से क्यों बच रहीं हैं?
जवाबः- व्यक्ति अपने विचार और व्यवहार से पहचाना जाता है। किसी की जुबान से निकले शब्दों को तीर-कमान की संज्ञा दी जाती है। ऐसा न हो, कि आज हमें जो शब्द कहे, वह कल हमें ही तीर की तरह चुभने का कारण बन जाएं। मेरे लिए अपने इस मुकाबले में एक-दूसरे पर हर रोज दो कड़वे बोल का प्रहार कर समय और क्षमता नष्ट करने की बजाय अपने लोकसभा क्षेत्र के प्रत्येक व्यक्ति व परिवार के लिए दो पल का वक्त निकालना जरुरी है। तभी लोग हमें, हमारी मंशा और उद्देश्य को समझ सकेंगे। प्रति दिन प्रतिव्यक्ति के लिए दो पल निकालकर किए गए दो अच्छे बोल सबसे महत्वपूर्ण हैं। रही बात मुझपर जुबानी प्रहारों का, तो मैंने पहले भी कहा है कि मैं और डॉ चरणदास महंत कबीर पंथ से हैं, जहां से शांति, विनम्रता और सहनशीलता की शक्ति संस्कारों में मिलती है।
सवालः- आपने आपको एक राजनीतिज्ञ के रुप में देखने की सोच से खुद को परे रखा था, फिर ऐसा क्या हुआ जो चुनाव मैदान में कदम रखा और वह भी दूसरी बार?
जवाबः- घर-परिवार हमें संस्कार और स्कूल-कॉलेज में हम अपने विचारों को विकसित करना सीखते हैं और फिर अपनी राह बनाते हैं। तब के दौर में तो कभी राजनीतिक कॅरियर के बारे में सोचा ही नहीं था। शादी के बाद दिग्गज राजनीतिक परिवार की बहू बनी और तब भी समाजसेवा के अपने विचार पर अड़ी रही। जन से ही समाज का निर्माण होता है, सो राजनीति में आने का आमंत्रण मिला तो यही लगा कि जनसेवा के जरिए समाजसेवा के अपने लक्ष्य को बेहतर गति दी जा सकती है। बस यही सोच लेकर पहली बार चुनाव लड़ा। पार्टी ने दूसरा मौका दिया और जनता ने दोबारा भरोसा जताया, इसलिए अपेक्षित सफलता से जनसेवा के अनुरुप अपनी अपेक्षाओं के विस्तार का ध्येय लेकर फिर से मैदान में उतर आई हूं।
सवालः- लोग कहते हैं कि आपके पास डॉ चरणदास महंत के अलावा और कोई आधार नहीं। आप उनके नाम के सहारे मैदान में हैं, क्या इस बात में कुछ बात है?
जवाबः- अक्सर हमें यह कहावत सुनने को मिलती है कि व्यक्ति की कामयाबी के पीछे उसकी पत्नी का हाथ होता है। मुझे यह कहते हुए गर्व और खुशी होती है कि मेरी कामयाबी के पीछे डॉ चरणदास महंत का सबसे बड़ा हाथ है। जब हम महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं, महिलाओं को हर क्षेत्र में प्रोत्साहित करने की बातें करते हैं तो अगर डॉ महंत ने मुझे आगे रख दिया, तो इतना हो-हल्ला मचाने का क्या तुक बनता है। मैं ही नहीं, स्वयं कोरबा लोकसभा सीट पर मेरी प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार भी महिला हैं और इससे मुझे बेहद खुशी हो रही है कि कोरबा की सीट पर हम दो नारियों के बीच मुकाबला हो रहा है और यह रोचक, उत्साहजनक और ऐतिहासिक होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
सवालः- आपने खुद के बारे में काफी कुछ कह डाला, क्या आप अपनी प्रतिस्पर्धी प्रत्याशी के बारे में कुछ कहना चाहेंगी, उनके लिए आपके मन में क्या विचार आते हैं?
जवाबः- सच कहूं तो दिन-भर की भाग-दौड़, गांव-गांव और शहर के वार्डों में लगातार जनसंपर्क के बाद जब कुछ वक्त की शांति होती है, तो यह स्वाभाविक है कि दिमाग में इस प्रतियोगिता में फिलहाल की एक मात्र प्रतिस्पर्धी के बारे में एक न एक बार तो सोच उभरती है। उनके लिए यही कह सकती हूं कि वह अपना काम कर रहीं हैं और मैं अपना काम कर रही हूं। दूसरी बात ये आती है कि मंजिल भले ही एक हो, पर रास्ते अलग हैं और मेरे लिए मंजिल जितना जरुरी है, रास्ते भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। जीत की दहलीज पर आकर पैर के छाले भले ही भले लगने लगते हैं, पर रास्तों पर चलकर जो अनुभव आपने कमाए होते हैं, उन्हें साथ लेकर जीत हासिल करने का आनंद ही अलग है। अगर रास्ते के अनुभव आपको या इस सफर में टकराने वालों को तकलीफ देते हैं, तो वे लोग भले ही पीछे रह जाएं, उनकी तकलीफें नींद में भी आपके साथ रहेंगी।