Election to the Speaker : लोकसभा में Speaker पद के लिए पक्ष और विपक्ष आमने-सामने, INDIA अलायंस से K Suresh और NDA से Om Birla का नामांकन पत्र दाखिल


भारतीय लोकतंत्र के 72 साल के इतिहास में पहली बार स्पीकर पद के लिए होगा चुनाव

Speaker in Parliament पद के लिए पहली बार सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ खड़ा हुआ है। दोनों ओर से ही अपने-अपने उम्मीदवार उतारे गए हैं। एनडीए ने ओम बिरला तो इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर के सुरेश ने नामांकन दाखिल कर दिया है। लोकसभ अध्यक्ष का चुनाव बुधवार 26 जून को होगा। इस पक्ष-विपक्ष में सहमति नहीं बन सकी और इसलिए भारतीय लोकतंत्र के 72 साल के इतिहास में पहली बार लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा। पार्लियामेंट में संख्या बल को देखते हुए स्पीकर पद के चुनाव में एनडीए प्रत्याशी का पलड़ा भारी दिख रहा है।

नईदिल्ली(thevalleygraph.com)। लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच अच्छी खासी खींचतान चल रही है। विपक्ष ने परंपरा के मुताबिक एनडीए से उपराष्ट्रपति पद की मांग की थी। पर उस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर अब इंडिया गठबंधन ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। इसलिए लोकसभा के इतिहास में पहली बार लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा। एनडीए के सहयोगी दलों ने जहां ओम बिड़ला के नाम का समर्थन किया है, इंडिया गठबंधन की ओर से के सुरेश ने नामांकन पत्र प्रस्तुत कर दिया है। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष से ओम बिरला का समर्थन करने का अनुरोध किया। उधर के सुरेश ने कहा कि यह पार्टी का फैसला है। लोकसभा में परंपरा रही है कि अध्यक्ष सत्ता पक्ष से होगा और उपाध्यक्ष विपक्ष से। उपाध्यक्ष पद हमारा अधिकार है, पर हमें वे इसे देने को तैयार नहीं हैं। मंगलवार की सुबह 11.50 बजे तक हमनें सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार किया, पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसलिए हमने नामांकन दाखिल किया है।

लोकतंत्र शर्तों पर नहीं चलता, विपक्ष का शर्त रखना अच्छी बात नहीं: केंद्रीय मंत्री राम मोहन नायडू
इस बीच राहुल गांधी ने इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया। विपक्ष ने स्पीकर पद के लिए सरकार का समर्थन करने का फैसला किया। लेकिन राहुल गांधी ने कहा था कि हमारा मुद्दा परंपरा के मुताबिक विपक्ष को उपसभापति का पद देने का था। उधर राहुल गांधी की इस शर्त पर पीयूष गोयल ने जवाब दिया है। गोयल ने कहा हम सशर्त समर्थन को अस्वीकार करते हैं। विपक्ष सशर्त समर्थन की बात कर रहा है। लोकसभा की परंपरा में ऐसा कभी नहीं हुआ। लोकसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष किसी पार्टी का नहीं बल्कि पूरे सदन का होता है। राहुल गांधी का कहना था कि मल्लिकार्जुन खरगे के पास केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का फोन आया। उन्होंने खरगे से अपने स्पीकर के लिए समर्थन मांगा, विपक्ष ने साफ कहा है कि हम स्पीकर को समर्थन देंगे, पर विपक्ष को डिप्टी स्पीकर मिले। राजनाथ सिंह ने कल शाम कहा था कि वे खरगे को दोबारा कॉल करेंगे, पर उनका कोई जवाब नहीं आया। राहुल गांधी टिप्पणी पर केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मल्लिकार्जुन खरगे एक वरिष्ठ नेता हैं और मैं उनका सम्मान करता हूं। कल से लेकर आज तक मेरी उनसे तीन बार बातचीत हो चुकी है। इस पर केंद्रीय मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा कि अध्यक्ष के चुनाव के लिए विपक्ष का शर्त रखना अच्छी बात नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ है। लोकतंत्र शर्तों पर नहीं चलता।

एआईसीसी के सचिव रह चुके हैं इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के सुरेश…

कांग्रेस के नेता सुरेश केरल के मवेलिकारा से सांसद हैं. वह 8 बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं. साथ ही साथ 2012 से 2014 के बीच केंद्रीय राज्य मंत्री रहे हैं. इसके अलावा प्रदेश के एक बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं. उन्हें कांग्रेस ने करेल अध्यक्ष की कमान भी सौंपी थी. इसके अलावा अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी के सचिव भी रह चुके हैं.


संघ से जुड़े रहे ओम बिरला मोदी की पिछली सरकार में रहे स्पीकर…
भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता ओम बिड़ला राजस्थान की कोटा लोकसभा सीट से जीतकर आते हैं। छात्र जीवन से ही संघ से जुड़े रहे हैं और भारतीय जनता युवा मोर्चा में रह चुके हैं. बिरला पहली बार 2003 में कोटा दक्षिण से विधायक चुने गए थे और लगातार तीन बार विधायक रहे. इसके बाद कोटा सीट से 2014 से सांसद हैं. नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया था. इस बार भी पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बनाया।


ऐसी है लोकसभा के अध्यक्ष चयन की प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 93 के तहत लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव कराया जाता है। सांसदों में से ही स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुना जाता है। प्रस्तावित नाम पर आम सहमति न होने पर चुनाव होता है और चुनाव से एक दिन पहले सांसद समर्थन का नोटिस देते हैं। अगर नाम पर सब सहमत होते हैं तो चुनाव नहीं होता है। जीत के लिए आधे से ज्यादा मौजूदा सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। किसी अन्य शर्त या योग्यता को पूरा करना जरूरी नहीं होता है, सिर्फ पद का प्रत्याशी लोकसभा का सदस्य होना चाहिए।


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