प्रभु के अनन्य भक्त है रामनामी समाज, शहर में सारंगढ़ से आ रहे समाज के भक्तों का आज किया जाएगा सम्मान
कोरबा(theValleygraph.com)। इनका तन-मन और संपूर्ण जीवन श्रीराम को अर्पित-समर्पित है। इनके रोम-रोम में राम और श्वासों में माता सीता बसतीं हैं। राम ही इनकी पहचान हैं और अस्तित्व भी, जिसने उन्हें श्रीराम नाम के समाज का वह ओहदा दिया, जिसे पाना हर किसी के बस में नहीं। प्रभु श्रीराम के अनन्य और अद्वितीय भक्तों का रामनामी समाज शुक्रवार को ऊर्जानगरी कोरबा में सम्मान किया जाएगा।
तन पर श्रीराम का नाम सहेजते आए रामनामी समाज की आबादी अब काफी कम रह गई है। वर्तमान में जांजगीर-चांपा, सारंगढ़, भाठापारा, महासमुंद और रायपुर जिले के लगभग सौ गांवों में बसेरा है और गिनती के ही परिवार बचे हैैं। रामनामी समाज सम्मान समारोह समिति के संयोजक संतोष खरे ने बताया कि रामनामी समाज श्रीराम के अनन्य भक्तों का एक ऐसा समाज है, जिनमें से प्रत्येक के रोम रोम में राम रमे हैं। उनके श्वास में सीता है। इन वाक्यों को अपने जीवन में उन्होंने साक्षात धारण किया है। प्रभु श्रीराम को उन्होंने केवल अपने ह्रदय में ही नहीं, अपितु राम-राम का गोदना बनाकर चेहरे से लेकर पूरे तन पर धारण कर रखा है। वे अपने प्रभु के नाम की माला बनाकर सदैव अपने शरीर में धारण करते हैं। ऐसे रामनामी समाज के रामभक्तों का कोरबा में सम्मान समारोह आयोजित किया जाएगा। श्री खरे ने बताया कि यह कार्यक्रम शुक्रवार को शाम 5 बजे से पुराना बस स्टैंड, गीतांजली भवन में आयोजित होगा।
जब भी मिलते हैं तो राम-राम कहकर अभिवादन
जीवन में और कुछ नहीं, बस राम नाम ही इनके लिए पर्याप्त है। प्रभु के नाम को इन्होंने रोम-रोम में सुशोभित किया है। वे तो प्रभु के निराकार रूप की भक्ति को ही जीवन का आधार मानते हैं। इसीलिए तन पर राम नाम का गोदना धारण करते हैं। बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि हरि व्यापक सर्वत्र समाना ये संदेश देते हैं कि राम तो रोम-रोम और कण-कण में बसते हैैं। जब आपस में मिलते हैं तो राम-राम कहकर ही अभिवादन करते हैं।
धीरे-धीरे लोप हो रहीं परंपरा सहेजने के प्रयास
राम नाम का गोदना तन पर, यहां तक कि चेहरे पर भी धारण करने की इनकी इस परंपरा का धीरे-धीरे लोप हो रहा है। इस पंथ के प्रमुख प्रतीकों में जैतखांभ या जय स्तंभ, मोर पंख से बना मुकुट, शरीर पर राम-राम का गोदना, राम नाम लिखा कपड़ा और पैरों में घुंघरू धारण करना प्रमुख है। समाज के लोग मांस-मदिरा का सेवन नहीं करते। परंपराओं के संरक्षण का प्रयास समाज के लोगों द्वारा किया जा रहा है।