खतरों के नासमझ खिलाड़ी, खंडहर हो चले जर्जर स्कूल भवन की छत पर धमा चौकड़ी करते हैं बच्चे


Video:- करतला ब्लॉक के शासकीय मिडिल स्कूल पकरिया से आया छत पर खेल रहे बच्चों का वीडियो।

अंदाजा लगाइए कि हर साल उम्दा रैंक लाने वाले बड़े बैनर के निजी स्कूलों में शिक्षकों का वेतन क्या होगा। 15, 20 या अधिकतम 30 हजार। पर स्कूल की फीस का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल होगा, जिसके लिए एड़ी चोटी एक कर के भी पालक अपने बच्चों का एडमिशन दिलाने तत्पर रहते हैं। क्योंकि उन्हें यहां न केवल अच्छी शिक्षा, बल्कि बच्चों के लिए पूर्ण सुरक्षित वातावरण का भी भरोसा होता है। दूसरी ओर 50 हजार, 80 हजार और एक लाख तनख्वाह उठाने वाले सरकारी शिक्षकों और उनके स्कूल से आज भी लोग कोई उम्मीद नहीं लगाना चाहते। इसकी वजह क्या है, इस वीडियो को देखकर समझा जा सकता है। अब अगर पढ़ाई छोड़कर महज 7वीं या 8वीं के बच्चे कभी भी ढह जाने वाले भवन की छत के ऊपर खेलते दिखें और उनके शिक्षकों का पता न हो, तो ऐसे में बेहतर शिक्षा तो छोड़िए, बच्चों की सुरक्षा का भरोसा भला कैसे की जा सकती है।

कोरबा(theValleygraph.com)। जिस पुराने भवन में बैठकर पढ़ाई करना बच्चों और शिक्षकों की सुरक्षा के लिए खतरनाक है, उसी की छत पर आधा दर्जन बच्चे चढ़कर खतरों के खिलाड़ी बने खेल रहे हैं। उन्हीं की सुरक्षा के लिए जर्जर भवन को छोड़कर ताले में बंद कर दिया गया और नए भवन में कक्षाएं लगाई जाने लगी। पर बार-बार जरूरत बताए जाने के बाद भी पुराने भवन को ढहाने की कवायद पूरी नहीं की जा सकी। बच्चे तो बच्चे ही हैं, जिनके लिए यह समझना मुश्किल है, कि यह जानलेवा हो सकता है। पर दुख की बात तो यह है कि स्कूलों के शिक्षक भी इसे नजरंदाज कर देते हैं। दूसरी ओर विभाग को शायद किसी अनहोनी का इंतजार है।

शुक्रवार को सोशल मीडिया पर वायरल हुआ एक वीडियो चर्चा का विषय बना रहा। यह वीडियो करतला विकासखंड अंतर्गत शासकीय माध्यमिक शाला पकरिया का बताया जा रहा है। वीडियो में स्कूल के कक्षा सातवीं-आठवीं के आधा दर्जन से अधिक बच्चे पुराने और खंडहर हो चुने बंद पड़े भवन की छत पर चढ़ गए हैं। इस जर्जर भवन की छत पर वे यहां-वहां कूदते-दौड़ते देखे जा सकते हैं। नए और पुराने भवन के बीच कुछ अंतर को भी वे जम्प कर पार करते दिख रहे हैं। भवन के ऊपर चढ़ने के लिए कोई सीढ़ी जैसी सुविधा नहीं है, जिसके लिए वे छज्जे के सहारे चढ़ते उतरते दिखे। इस तरह का स्टंट जानलेवा साबित हो सकता है, पर स्कूल के शिक्षक या वहां से आते-जाते लोगों में कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति उन्हें रोकने की जहमत उठाना जरूरी नहीं दिखा।

विभाग ने नए भवन बनाने को लेकर सक्रियता तो दिखाई, लेकिन पुराने भवन, जो जर्जर हालत में है, उसे उसी हालत में छोड़ दिया गया। उल्लेखनीय होगा कि शिक्षा विभाग ने जरूरत को देखते हुए नए भवनों का निर्माण तो किया गया, लेकिन पुराने भवन को नहीं तोड़ा गया। इसी तरह की स्थिति जिले में कई शासकीय प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक, हाई और हायर सेकेंडरी स्कूल हैं, जिन्हें अनुपयोगी करार दे दिया गया है। स्थिति यह है कि बारिश के दिनों में भवन के छत से आए दिन प्लास्टर गिरते रहे हैं। पर उन्हें पूरी तरह ढहाकर चिंतामुक्त होने की कवायद अब तक अधूरी है।

ढहाने योग्य जिले में कई भवन, नहीं मिलती अलग से राशि
जिले के कई स्कूलों के पुराने भवन के दीवार भी गिरने के कगार पर है। ऐसे में शिक्षक और अभिभावक भी बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। हालांकि स्कूल नए भवन में लगाए जा रहे हैं, लेकिन खेल-कूद की छुट्टी में बच्चे खंडहर भवनों की ओर नहीं जाएं, इसे लेकर कोई ठोस इंतजाम न के बराबर है। जानकारी के अनुसार जिले के विभिन्न विकासखंडों समेत कई ऐसे कई पुराने स्कूल भवन मौजूद हैं, जो खंडहर हो जाने के कारण उपयोगहीन घोषित हैं। पर उन्हें ढहाने के लिए अब तक कोई ठोस कवायद नहीं की जा सकी है। विभाग के अनुसार जर्जर भवनों को ढहाने के लिए भी अलग से राशि का प्रावधान नहीं होता।

मैदानों में बने भवन, खेलते-खेलते खंडहर के पास चले जाते हैं बच्चे

पुराने भवनों के उपयोगहीन करार दिए जाने के बाद कई जगह जो नए भवन बने, वह भी उनके पास या मैदान में बनाए गए हैं। ऐसे में बच्चे कई बार खेलते खेलते पुराने भवन के पास चले जाते हैं। हालांकि शिक्षक बच्चों की ओर नजर बनाए रहते हैं, पर कई बार बच्चे पुराने भवनों की भी चले जाते हैं। इसे लेकर अभिभावक बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। विभाग की ओर से स्कूल के मैदान में ही नए भवन बनाए गए हैं और पुराने भवन पहले से ही थे। एक ही मैदान में दो स्कूल का भवन होने से खेल का मैदान भी सिमटते जा रहे हैं।

वर्जन
जर्जर व उपयोगहीन घोषित किए गए भवनों से बच्चों को दूर रखने के स्पष्ट निर्देश हैं, उसके बाद भी अगर बच्चे छत पर चढ़कर खेल रहे हैं, तो यह स्कूल प्रबंधनों को लापरवाही है। मैं बीईओ से चर्चा करूंगा। पर ऐसे भवनों को ढहाने के लिए अलग से राशि का प्रावधान नहीं है।

– जीपी भारद्वाज, जिला शिक्षा अधिकारी, कोरबा
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