श्रीराम का नाम लेकर डॉ सुरजीत सिंह ने छत्तीसगढ़ी कविताओं में पिरो दिया संपूर्ण सुंदरकांड


डॉ सुरजीत ने छत्तीसगढ़ी में रच दिया श्रीरामचरित मानस का संपूर्ण सुंदरकांड, अयोध्याजी तक पहुंच चुकी है ऊर्जानगरी के ख्यातिलब्ध अस्थिरोग विशेषज्ञ की ख्याति, देश में इस तरह का प्रथम ग्रंथ.

हृदय में राम नाम का वास हो, तो असाधारण काम भी आसान बन जाते हैं। कई टुकड़ों में टूटी और चकनाचूर हो जाने वाली हड्डियों को जोड़कर आदमी को पैरों पर फिर से खड़ा कर देने में माहिर डॉ. सुरजीत सिंह ने अपनी लगन से यह साबित कर दिखाया। उन्होंने श्रीरामचरित मानस के संपूर्ण सुंदरकांड को छत्तीसगढ़ी में रचने का गौरव हासिल किया है। छत्तीसगढ़ी में अनुवादित उनकी यह रचना संपूर्ण भारत में इस तरह का पहला ग्रंथ है। इसके लिए उन्होंने अपने मूल काम से ब्रेक लेकर वक्त निकालने की बजाय रात-रातभर जागरण किया और राम का नाम लेकर वह कर दिखाया, जो अपने-आप में किसी नए कीर्तिमान से कम नहीं।

कोरबा(thevalleygraph.com)। जिले ही नहीं, प्रदेश में ख्यातिलब्ध अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरजीत सिंह ने अपनी इस रचना से कोरबा को पूरे देश में गौरवान्वित किया है। यह सफलता हासिल करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत भी की है। डॉ. सिंह ने अपने चिकित्सकीय प्रोफेशन के अति महत्वपूर्ण दायित्व के बीच नहीं, बल्कि बाद के वक्त को अर्पित कर राम के प्रति अपने समर्पण को निभाया है। उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल में पूरे दिन मरीजों की तीमारदारी के बाद जब वे थककर चूर हो जाते हैं, तब आराम-विश्राम की बजाय वे राम का नाम लेकर रामकाज में जुट जाते हैं। रात-रातभर जागकर ही उन्होंने पहले गहन अध्ययन किया और उसके बाद एक-एक शब्द को अनुवादित-रूपांतरित कर सुंदर पंक्तियों में पुन: संजोया। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन ठीक आठ बजे वे अपने चिकित्सा कार्य का कर्तव्य निभाने कैबिन में बैठ जाते हैं। इसके बाद कम से कम रात सात से आठ बजे और गंभीर केस आने पर देर तक सेवा देते हैं। इसके बाद फ्रेश होते हैं, भोजन करते हैं और फिर रात 11 बजे से लेकर कभी दो तो कभी तीन बजे की रात तक लिखते रहते हैं। इस तरह उन्होंने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए करीब एक साल का कठिन तप किया और तब जाकर उनका छत्तीसगढ़ी में अनुवादित संपूर्ण सुंदरकांड तैयार हो सका।

अयोध्याजी के अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय में उनकी श्रीरामचरित मानस
डॉ सुरजीत सिंह ने कहा कि लेखन के क्षेत्र में उनकी नई यात्रा वर्ष 2011 से प्रारंभ हुई थी। सबसे पहले उन्होंने आत्म संस्मरण लिखा। उसके बाद दूसरी रचना के रूप में श्रीमद्भागवत गीता और फिर हिंदू धर्म मूल शास्त्र के सिद्धांतों के वैज्ञानिक प्रयोगों का अध्ययन कर हिंदू धर्म, वैज्ञानिक विश्लेषण और प्रमाणिक तथ्य के रूप में प्रकाशित किया। अगली कड़ी में उन्होंने 1200 वेज की वृहद महाभारत लिखी, फिर 900 पृष्ठ के श्रीरामचरित मानस की छत्तीसगढ़ी रचना की, जो वर्तमान में अंतर्राष्टÑीय संग्रहालय अयोध्या में संग्रहित है। इसके लिए उन्होंने अयोध्याजी की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है।

छत्तीसगढ़ी कविताओं में पिरोया गया देश का पहला ग्रंथ
अपने नवीनतम किताब के रूप में डॉ सिंह ने श्रीरामचरित मानस के संपूर्ण सुंदरकांड को छत्तीसगढ़ी कविताओं के रूप में अनुवाद किया है। उन्होंने कहा कि इस रचना को कविता के रूप में इस ढंग से लिखा गया है, जिसे पढ़ भी सकते हैं, समझ भी सकते हैं और गाया भी जा सकता है। यह संपूर्ण भारत में ऐसी पहली किताब है, जिसमें सुंदरकांड को छत्तीसगढ़ी कविता में अनुवादित किया गया है। इसे पूरा करने में उन्हें एक साल का समय लगा। वर्तमान में वे अपने नए लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं, जिसमें उन्होंने बाल कांड को भी छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करने का बीड़ा उठाया है। इसके अलावा वे दुर्गा सप्तशती, शिव तांडव स्तोत्र, राम स्तुति व संस्कृत श्लोकों को छत्तीसगढ़ी में अनुवाद कर एक बुक प्रकाशित करने पर कार्य कर रहे हैं।
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