भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा अर्चना का पर्व अनंत चतुर्दशी 17 सितम्बर (मंगलवार) को है। इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत रखकर शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से पूजा करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
अनंत सुखों को देने वाला अनंत चतुर्दशी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि यदि इस दिन श्रीहरि (विष्णु जी) की पूजा की जाए तो 14 वर्षों तक अनंत फल मिलता है। पौराणिक कथा माने तो पांडवों को भी इस व्रत के प्रताप से खोया राजपाठ मिला था।
जब वेदव्यास जी ने गणेश जी के शरीर का तापमान ठंडा करने के लिए उन्हें पानी में डुबा दिया और थोड़ी देर के बाद गणपति जी का शरीर ठंडा हो गया. जिस दिन महाभारत का लिखने का काम खत्म हुआ, उस दिन अनंत चतुर्दशी का दिन था. तबसे ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री गणेश को शीतल करने के लिए उनका विसर्जन किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी के दिन से पहले ही पूजा सामग्री तैयार कर ली जाती है। अनंत चौदस के दिन, भक्त लकड़ी के तख्त पर कुमकुम या सिंदूर से 14 लंबे ‘तिलक’ बनाते हैं और उन 14 तिलकों पर 14 पूरियाँ (तली हुई रोटी) और 14 माल पुआ (एक गहरी तली हुई भारतीय मीठी रोटी) रखते हैं।
ज्योतिषों के अनुसार अनंत सूत्र की चौदह गाठें भूलोक, भुवलोक, स्वलोक, महलोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल, और पताल लोक का प्रतीक है। अनंत पूजा को लेकर अनंत की खरीदारी शुरू हो गई है।
अनंत पूजा का शुभ मुर्हूत:
पंडित श्रीकांत मिश्रा (तखतपुर वाले) के अनुसार भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। इस बार भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा मंगलवार को की जाएगी। मिथिला पंचांग के अनुसार चतुर्दशी तिथि का आरंभ 16 सितंबर दिन के 1:15 से हो रहा है एवं समापन 17 सितंबर दिन के 11.09 पर होगा। इसलिए अनंत चतुर्दशी उदया तिथि में 17 सितंबर को मनाया जाएगा। पूजा शुभ मुहूर्त प्रात: 8.52 से दोपहर 1.31 तक है।
पूजा-विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।
संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
गणेश पूजा में सबसे पहले गणेश जी का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक बनाया जाता है। गणेशजी प्रथम पूज्य देव हैं, इस कारण पूजन की शुरुआत में स्वस्तिक बनाने की परंपरा है।
स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।
संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
गणेश पूजा में सबसे पहले गणेश जी का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक बनाया जाता है। गणेशजी प्रथम पूज्य देव हैं, इस कारण पूजन की शुरुआत में स्वस्तिक बनाने की परंपरा है।
भगवान गणेश को पुष्प अर्पित करें।
भगवान गणेश को दूर्वा घास भी अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दूर्वा घास चढ़ाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं।
भगवान गणेश को सिंदूर लगाएं।
भगवान गणेश का ध्यान करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
गणेश जी और भगवान विष्णु को भोग भी लगाएं। आप गणेश जी को मोदक या लड्डूओं का भोग भी लगा सकते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।