दो देशों के बीच की लड़ाई में आज सभी चिंतित है कि सारा विश्व कहीं एक और महायुद्ध के चक्रवात में न फंस जाए। शनिवार की दोपहर यही चिंता बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा में नजर आई। दोपहर की पाली में हुए इतिहास के पर्चे में वर्तमान दशा की फिक्र साफ देखी जा सकती थी। इसमें एक सवाल यह भी पूछा गया था कि आखिर ऐसी कौन सी परिस्थितियां रहीं, जो हिटलर के उदय के लिए उत्तरदायी बनीं। इसके अलावा इसी पर्चे का एक सवाल यह भी था कि द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों की विवेचना कीजिए। भले ही यह एक कक्षा को पास करने का इम्तिहान है, पर इन सवालों के रुप में मौजूदा समस्याओं को हल करने के जवाब के पीछे आज सारा विश्व लगा हुआ है।
कोरबा(thevalleygraph.com)। कमला नेहरु महाविद्यालय में इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सुशीला कुजूर ने कहा कि विश्व की मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए शक्तिशाली देशों के बीच अपने आप को प्रतिस्थापित करने के लिए एक-दूसरे को नीचा दिखाने तथा उनके संसाधन पर अपना अधिकार जमाने, एकाधिकार हासिल करने की जोर-आजमाइश स्पष्ट दिखाई देती है। ये सभी बातें पुराने समय में भी हुई, जिसके कारण विश्व युद्ध का संकट सारे विश्व ने उठाया। वर्तमान में भी हम एशिया महाद्वीप के दो देशों के युद्ध को इसी संदर्भ में देख रहे हैं। कॉलेज में खासकर इतिहास के सिलेबस में इस तरह के प्रश्नों को शामिल करना युवाओं को आगे प्रतिस्पर्धी युग के लिए तैयार करना और सम सामयिक ज्ञान की वृद्धि कराना है।
एकध्रुवीय विश्व का अर्थ है कि संपूर्ण विश्व का एक गांव : डॉ सुशीला कुजूर
डॉ कुजूर ने बताया कि इतिहास के इस पर्चे का एक सवाल यह भी पूछा गया था कि एकध्रुवीय विश्व का अर्थ क्या है। उन्होंने बताया कि एकध्रुवीय विश्व का अर्थ है कि संपूर्ण विश्व का एक गांव के समान बन जाना, जिसमें प्रत्येक विश्व की संपूर्ण चीजें साझा होती हैं। जैसे व्यापार, ज्ञान विज्ञान और तकनीकें। यही संदेश भारत ने सारे विश्व को दिया है, जिसे वसुधैव कुटुम्बकम के माध्यम से विश्व शांति और भाईचारा की परिकल्पना से जोड़कर देखा जाता है। आज इसी मूल मंत्र की सर्वाधिक आवश्यकता है, ताकि हम युद्ध की राह छोड़ कर शांति और वैश्विक एकता के मार्ग को अपनाएं।