इन्होंने प्रकृति के लिए नौकरी छोड़कर पानी-पेड़ से दोस्ती और प्लास्टिक के खिलाफ छेड़ दी जंग


जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, असम और दिल्ली जैसे देश के अनेक राज्यों में पर्यावरण संरक्षण की मुहिम चला रहे पर्यावरणविद अनिल कुमार

पर्यावरणविद अनिल कुमार ने अपने सुनहरे कॅरियर की राह सिर्फ इसलिए छोड़ दी, ताकि आज की उनकी कोशिशें हमारे आने वाले कल को संवार सकें। उन्होंने शासकीय सेवा से त्यागपत्र देकर प्रकृति की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। पेड़-पौधों और जल से दोस्ती कर प्लास्टिक के खिलाफ जंग छेड़ दी। उन्होंने अब तक जम्मू कश्मीर, लद्दाख, दिल्ली, असम समेत देश के अनेक राज्यों में पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य किया और अब उनका टारगेट छत्तीसगढ़ है।

कोरबा(theValleygraph.com)। पर्यावरण संरक्षण पर शासकीय ईवीपीजी अग्रणी महाविद्यालय में गुरुवार को जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन में कॉलेज के छात्रों सहित प्राध्यापकों को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने और अपने कर्तव्य को पूर्ण करने के विषय में जानकारी दी गई। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता रहे अनिल कुमार देशभर में भ्रमण कर पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरुक करने के प्रयास में जुटे हैं। अनिल कुमार ने थ्री-पी मॉडल का महत्व बताते हुए कहा कि पेड़, पानी और प्लास्टिक को समझना होगा। अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे, पानी तो हम बना नहीं सकते। इसलिए हमें इसे बचाना होगा। प्लास्टिक वर्तमान दौर में किसी खतरनाक जिन्न से कम नहीं है। जिसकी उम्र 800 साल है। यह हमारे पर्यावरण को लगातार प्रदूषित कर रहा है। प्लास्टिक के कप, थाली आदि में खाने-पीने से बचें। यह कैंसरजन्य लक्षण पैदा करता है। जल और वायु बेशकीमती है। भारत ही केवल एक ऐसा देश है। जहां धरती को मां कहा जाता है। लेकिन हम लगातार नदी, नालों और प्रकृति को प्रदूषित कर रहे हैं। धरती का सम्मान करना होगा। इसके संरक्षण की दिशा में काम करना होगा। रोजमर्रा के जीवन में बदलाव लाने होंगे और हम सबको समाज में पर्यावरण की दिशा में जागरूकता लानी होगी। कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर यूथ हॉस्टल्स एसोसिएशन के सचिव शैलेंद्र नामदेव, बॉटनी विभाग की एचओडी डॉ रेनूबाला शर्मा महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक एसके गोभिल, एलएन कंवर, डॉ बीएस राव, सुशील अग्रवाल, सुशील गुप्ता, शुभम ढोरिया, मधु कंवर, आरके मौर्य, अजय पटेल उपस्थित रहे।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार विश्व में प्रत्येक व्यक्ति को 428 पेड़ों की जरूरत
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति को 428 पेड़ की जरूरत है। लेकिन वर्तमान में हमारे देश में प्रति व्यक्ति 28 पेड़ मौजूद हैं। हम लगातार प्रकृति कक दोहन कर रहे हैं। अपने मतलब के लिए प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। इसे बंद करना होगा। किसी भी क्षेत्र में 33 प्रतिशत जंगल होना चाहिए. लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा भारत में केवल 21 प्रतिशत ही है।

कल के लिए सिर्फ पत्ते नहीं, जड़ों को सींचना होगा: डॉ साधना खरे
कार्यक्रम में उपस्थित शासकीय ईवीपीजी कॉलेज की प्राचार्य डॉ साधना खरे ने कहा कि धरती पर जीवन तभी बचेगा। जब प्रकृति सुरक्षित होगी। आदिवासी समाज और हमारे पूर्वज भी पेड़ों और जानवरों की पूजा करते थे। जिससे वो यह संदेश देते थे कि वह प्रकृति से कितने जुड़े हुए हैं। हम पेड़ काटेंगे, कोयला, पेट्रोल निकालते रहेंगे। तब एक दिन ऐसा आएगा जब सब सब खत्म हो जाएगा। हम दोनों तरफ से मोमबत्ती जला रहे हैं। जहां बैठे हैं, उसी डाल को काट रहे हैं। इसलिए सिर्फ पत्तों को नहीं, जड़ों को सींचना होगा आदतों को सुधारना आचरण सुधारना होगा।

20 मिलियन प्रजाति, सिर्फ मानव दे रहे प्रकृति को आघार: डॉ संदीप शुक्ला
कार्यक्रम का संचालन बॉटनी के सहायक प्राध्यापक डॉ संदीप शुक्ला ने किया जिन्होंने कार्बन फुटप्रिंट्स के घातक परिणामों से अवगत कराया और यह भी बताया कि धरती पर 20 मिलियन प्रजातियां हैं। लेकिन इसमें से केवल मनुष्य ही एक ऐसी प्रजाति है। जिससे प्रकृति को नुकसान पहुंच रहा है। मनुष्य ही प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कमला नेहरू कॉलेज के सहायक प्राध्यापक वेदव्रत उपाध्याय और निधि सिंह व अन्य मौजूद रहे।
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